आज आसमां बरसने के मूड में है.. गनीमत कि सोशल मीडिया पर शांति है .. और जितना पिछले कुछ दिनों में समझ पाई, टीवी पर भी होगी !
शायद न्यूज़ चैनेल्स भडकाने की बजाय, अब बढ़ चढ कर अभिनन्दन की कामयाबी को भुनाने में लगे होंगें.. होंगें कह रही हूं क्यूंकि टीवी नहीं चलाया आज मैंने.. मेरे जैसी प्रकृति प्रेमी के लिए कृत्रिम शोर शराबे में डूबे खबरी (!) झेलने आसान भी नहीं.. सो अब चुनाव हो जाने तक हिंदी न्यूज चैनल से तो पूरा परहेज़ रखने वाली हूं.. कहीं न कहीं अजब फीलिंग अाई कि वे सब दर्शक को बेवकूफ़ समझते हैं.. जैसे चाहा कान मरोड़ कर समझा दिया… अपने से नहीं हजम होते ये लोग…
दूसरी तरफ सोचती हूं कि क्या सिर्फ उन्हें अवॉयड करना ही काफी है? पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ, हुआ तो असल दुनिया में ही.. और आज भी क्या बदल गया?
रोज़ मरते जवान और सिविलियन, आज भी दम तोड़ रहे हैं.. GDP ऑल टाइम लो है.. महंगाई कमर तोड़ रही है.. तेज़ी से प्राइवेटाइजेशन हो रहा है, कितने क्षेत्रों में ज़रूरत है, ये तो खैर एक्सपर्ट्स जानें.. पर नौकरी न देकर, कॉन्ट्रैक्ट पर युवाओं को पीसते रहना, शायद निजीकरण की सबसे बड़ी समस्या होने वाली है… आखिर बेरोज़गारी के बाद इंसान खाने कमाने लायक ही न रह जाए तो बड़े बड़े वादों, युद्ध के इरादों और मिश्री घुले कड़वे मखौलों से हासिल होना भी क्या??
बहुत भटक चुके इतने दिन… नेगेटिविटी में डूबते उबरते, एक पल को तो हम सबको थमना होगा और खुले ठन्डे दिमाग से सोचना होगा कि आखिर पिछले कुछ सालों में हासिल क्या क्या हुआ.. और नहीं हुआ तो अब आगे क्या? राजनीति कीजिए पर हां, अब जनता को नीति से राज करने वाले की सख्त ज़रूरत है… आम सहमति और शांति पूर्ण लोकतंत्र को मैं मिस करने लगी हूं.. जाने आपने किया या नहीं !!! अनुपमा सरकार
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