भूलना हो तो इतना याद करो कि
वो अहसास नहीं अभ्यास बन जाए
वास्तविक अनुभव नहीं आभास बन जाए
पल पल रटा गया नाम अस्तित्व खो बैठता है
क्षण क्षण झलकता प्रतिबिंब निर्जीव हो उठता है
मूर्तियां गढ़ दो, आदर्श खो जायेंगे
सूक्तियां रच दो, सूत्र मिट जाएंगे
बांधो काल्पनिक पुल, सत्य धारा विलीन हो जाएगी
साधो असंभव मानक, आशा ज्योति क्षीण हो जाएगी
सदियों से यही हुआ हश्र, ईश्वर, प्रकृति, जीवन मूल्यों का
तुम चाहो तो ये नाटक प्रेम के साथ भी दुहरा सकते हो…
Anupama Sarkar
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