Hindi Poetry

नारंगी ख़ुश्बू

FB_IMG_1465722568267
आज कुछ मुस्कुराते फूल दिखे
सूरज से लुक्का छिपी खेलते
अल्हड़ नाज़ुक पंखुड़ियां
हवा में लहरा रहीं थीं
मदमस्त भँवरों की टोलियां
गीत प्रेम के गुनगुना रहीं थीं
धूप ने शर्माकर हवा से कहा
ये बसन्त तो छुपा रुस्तम निकला
फ़रवरी जाते-जाते पतझड़ की पाती
फागुन के रंगों में ढलने लगी है
गर्मियों की आहट दिल में मचलने लगी है
मैं वहीं थी, चुपचाप खड़ी
धुप और हवा की गवाह बनी
हौले से इक नाम बुदबुदा बैठी
तिलिस्म सा घुला फिज़ा में और
इठलाता बलखाता झौंका उड़ चला
नारंगी ख़ुश्बू है उसमे, मिला क्या ?
Anupama

Leave a Reply