आज कुछ मुस्कुराते फूल दिखे
सूरज से लुक्का छिपी खेलते
अल्हड़ नाज़ुक पंखुड़ियां
हवा में लहरा रहीं थीं
मदमस्त भँवरों की टोलियां
गीत प्रेम के गुनगुना रहीं थीं
धूप ने शर्माकर हवा से कहा
ये बसन्त तो छुपा रुस्तम निकला
फ़रवरी जाते-जाते पतझड़ की पाती
फागुन के रंगों में ढलने लगी है
गर्मियों की आहट दिल में मचलने लगी है
मैं वहीं थी, चुपचाप खड़ी
धुप और हवा की गवाह बनी
हौले से इक नाम बुदबुदा बैठी
तिलिस्म सा घुला फिज़ा में और
इठलाता बलखाता झौंका उड़ चला
नारंगी ख़ुश्बू है उसमे, मिला क्या ?
Anupama
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