Music Teacher, मैंने न देखी होती अगर Ajeeb Daastaans न देखती! नेटफ्लिक्स अक्सर आपको बांधने के चक्कर में एक ही जॉनर और एक्टर की मूवी रिकमेंड करता चलता है और इसी क्रम में मैं फिर से टकरा गई मानव कौल से!
जी, यह मूवी पूरी तरह उन्हीं की है, उनके किरदार के इर्दगिर्द घूमती और मेरी इस शिकायत को दूर करती कि वे अक्सर सेकंड लीड बनकर रह जाते हैं। यहां उनके पास भरपूर मौका था, अपनी प्रतिभा दिखाने का, खुद को फ्रंट रनर साबित करने का, कि कोई और हीरो तो है ही नहीं यहां।
पर लगता है मानव अक्सर वही फिल्में चुनते हैं, जिनमें वे खुद सेंटर स्टेज पर न हों! सो बिना किसी और हीरो के होते भी, उन्हें टफ कंपटीशन देती हैं दिव्या दत्ता और अमृता बागची! अमृता को हीरोइन और दिव्या को साइड हीरोइन कह सकते हैं पर दिव्या से बेहतर अपने किरदार को किसी और ने नहीं निभाया। एक अच्छी उमर की seductive beautiful neighbour, जिसका प्रेम निर्बाध गति से मानव को बाहुपाश में भरता है। स्त्री रूप को उसकी लिमिटेड डायमेंशन में जीती हुई, दिव्या बेहद पसंद आईं।
अमृता मासूम दिखीं, अच्छी लगीं पर उनकी डायलॉग डिलीवरी और एक्टिंग इंप्रेस नहीं कर पाई। वह केवल एक बंगाली लड़की में रिड्यूस होकर रह जाने वाली लगीं।
मानव ने इसमें एक साथ दो किरदार निभाए, अल्हड़, मस्त, महत्वाकांक्षी युवा और बुझा मुरझाया, नाकामयाबी से चिढ़ा खीजा, अपनी ही परिभाषाओं में उलझे म्यूजिक टीचर का! मुझे दोनों तरह अच्छे लगे, धीर गंभीर और शर्मीले, टैलेंटेड बट अंडरस्टेटेड!
फिल्म ने बांधे रखा, गति थोड़ी कम थी, डायलॉग थोड़े बोरिंग पर शिमला की खूबसूरती और धीमा धीमा कस्बाई जीवन, लुभाता भी रहा। पर अंत आते आते, यूं लगा मानो बहुत जल्दी रही हो मूवी खत्म करने की। मानव के किरदार को जो ग्रोथ पूरी मूवी देने की कोशिश में लगी रही, उसे अंत आते आते झटके से उखाड़ दिया गया। और बाकी रह गया, सिर्फ एक थका हारा आदमी, जो दो औरतों के दिल में रहने के बावजूद, प्रेम के अहसास से गौण ही रहा!
क्लाइमैक्स बेहतर होता तो मूवी बहुत पसंद आती, अभी फिलहाल औसत भर, पर देख लेने में बुराई कोई नहीं… अनुपमा सरकार
Recent Comments