तुमने रंगीनियों को चाहा
शीशों से इमारतों को सजा दिया
मैंने रंगों को चाहा
तितलियों को हथेली पर बिठा लिया
तुमने संगीत को चाहा
सुरों को राग ताल में साध लिया
मैंने सुरों को चाहा
बुलबुल के गीतों में खुद को भुला दिया
तुमने अमीर होना चाहा
सिक्कों की खनक में जीवन गीत सुला दिया
मैंने अपना ज़मीर चाहा
अंतर्मन की पंखुड़ियों में खुद को गले लगा लिया
नहीं जानती कौन हारा किसे क्या हासिल हुआ
पर हां तुम्हारे अनथक प्रयासों ने नींव हिला दी
धोखे, फरेब, नक्काल होने पर मुहर लगा दी
झूठे रुतबे, साजिशों और रुपए के तराजू में
बेलौस बहकती वो दुनिया बहुत मुबारक तुम्हें…..
Anupama Sarkar
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