Fiction

मिसिज़ जोशी

बातों का सिलसिला अक्सर लंबा खिंचता है… चाय की छोटी सी प्याली.. न न फूल-पत्ती वाली खूबसूरत नहीं.. बल्कि वही स्ट्राइप्स वाले थरमोफोर्म के कप में दो घूँट भूरा गर्म पानी और उस पर चिपकी गाढ़ी मलाई.. हाथ में लिए पन्द्रह मिनट हो चले… चाय जाने कैसे द्रौपदी के अक्षय पात्र सी खत्म होने का नाम ही न लेती थी.. वैसे भी बहाने अक्सर ऐसे ही होते हैं… फाइलें बिखरी हुईं.. पेन बेतरतीबी से किसी रजिस्टर में उलझा हुआ… पुराने ढर्रे पर घिसट घिसट कर अपनी आखिरी सांसें गिनता कम्प्यूटर… और बड़ी सी मेज की ओट में बैठी माचिस की तीली सी वो…

अरे न न, तीली से केवल काया का अंदाज़ न लगाइये… बारूद भी उतना ही भरा.. बूँद भर आतिश और धमाका सारे जगत में… जब नई नई आई थी तो लोगों ने अचकचाकर देखा था… बदन पर चमड़ी नाम मात्र को शेष थी.. किसी भयंकर बिमारी की चपेट में थी बेचारी… हाँ, पहले पहल तो यही शब्द मुंह पर बरबस चला आता था…. पर कहते हैं, हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती.. वैसे अधजल गगरी छलकत जाए और थोथा चना बाजे घना भी दिमाग में खनक रहा है.. पर हाल फिलहाल मिसिज़ जोशी को समझने में ज़्यादातर लोगों ने गच्चा ही खाया है… उनकी हर साल हो जाने वाले स्थानांतरण की कहानी शुरुआत में जितनी अचरज में डालती थी, दो महीने बीतते-बीतते अधीनस्थों और यहां तक की नित नई उलझनों को सुलझाते उनके अफसरों के लिए भी उम्मीद की आखिरी किरण प्रतीत होने लगी..

आज का हादसा भी कुछ ऐसा ही था… बात मामूली सी थी.. वैसे भी बातें मामूली ही हुआ करती हैं, गैर मामूली तो मुद्दे हुआ करते हैं… पर राई का पहाड़ बनाने में समय भी कितना लगता है… बहरहाल, मुद्दे की बात पर वापिस आते हुए, सुबह ही हैडक्वार्टर से नया आदेश पारित हुआ था… सरकारी दफ्तरों के सम्पूर्ण कम्प्यूटराइज़ेशन का… महत्वाकांक्षी योजना थी…मामूली से मामूली सरकारी कागज़ात भी समय असमय बेशकीमती दस्तावेजों में तब्दील हो जाया करते हैं… एक लाइन की गड़बड़ पत्र का मजमून बदल देती है…और एक शब्द की हेराफेरी व्यक्ति विशेष का नाम.. और यहां तो बात पूरी पूरी फाइलों को स्कैन करके भविष्य के लिए सुरक्षित करने की थी.. रूटीन से बंधे स्टाफ में थोड़ी खलबली मचनी स्वाभाविक थी… सुबह से चाय के दो दौर हो चुके थे पर अब भी जिज्ञासा और अफवाहों का सिलसिला थमा नहीं था… मिस्टर वर्मा आदेश पत्र का सूक्ष्म अन्वेषण करने में बिज़ी थे.. मिसिज़ जोशी ने विशेष तौर पर उन्हें अपने कमरे में बुलाकर हिदायत दी थी कि ये काम दो दिन में पूरा हो जाना चाहिए…

दो दिन!! सुनकर सबके माथे ठनके.. अरे, स्कैनर है कहाँ, जिसमे फाइलों को फीड करके सेव करना है… जवाब मिला, स्पेशल कॉन्ट्रैक्ट इशू हो गया है, कल तक आ जाएगा… तब तक सभी दस्तावेजों की सूची बनाकर, अपने अफसर से पारित करवानी है… चलिए, ये भी भली कही.. हर सीट पर पे कमिशन का काम ही क्या कम था, जो ये नई मुसीबत बिना आगाह किये चली आयी थी… सब मुंह बाए एक दूसरे को देख रहे थे और बकायदा फूंक मार, मलाई हटाकर, ठंडी पड़ चुकी चाय के घूँट हौले-हौले पी रहे थे..

तभी मिस्टर वर्मा ने लंबी अंगड़ाई लेकर चुप्पी तोड़ते हुए ठहाका लगाया.. अरे यार! तुम सब इतनी टेंशन ले ही क्यों रहे हो.. सरकारी आदेश भी कभी दो दिन में पूरे होते हैं.. और यहां तो हेड क्वार्टर ने ही दो महीने लिखकर दिए हैं.. इतने में तो हम घर का भी कम्प्यूटराइजेशन करवा देंगें.. कहकर वे फिर खुलकर हंसे.. उनकी चुहलबाज़ी रंग लाई.. कमोबेश सभी स्टाफ मेंबर्स ने चैन की सांस ली और ठंडी चाय के आखिरी घूँट को गटक अपनी-अपनी सीट पर प्रस्थान किया.. वातावरण सामान्य हो चला था..

पर कहीं पास ही तूफ़ान अंगड़ाइयां ले रहा था… अपने छोटे से केबिन को, विलक्षण दुर्ग में तब्दील कर चुकी, झाँसी की रानी की तरह दुश्मनों से जूझती अबला बाला, माथे पर गहरे बल डाले नए आदेश का अवलोकन कर रही थी…

अक्सर मिसिज़ जोशी में जोश उमड़ता भी कुछ अलग ही ढंग से था… अपनी गलतियां अनदेखी कर दूसरों के काम में अड़चनें पैदा करना उनका ख़ास शगल था.. अपनी अफलातूनी आदत से मजबूर, वे अक्सर जल्दबाज़ी में, पढ़ने लिखने में भूल कर बैठतीं… हालाँकि उनकी इस आदत से परिचित होते ही उनका कार्य भार काफी हल्का कर दिया गया था, ताकि दफ्तर के काम में बेवजह की रोकटोक से बचा जा सके… पर फिर भी आये दिन कोई न कोई नया हादसा हो ही जाता..

दो महीनों में तीन पर्सनल सेक्रेटरी उनके साथ काम करने से मना कर चुकीं थीं.. नव भारत की उन्नतिशील अर्थव्यवस्था में नारी शक्ति तेज़ी से उभर रही है… ज़ाहिर तौर पर दफ्तरों में भी महिला स्टाफ अब ज़्यादा तादाद में है, खासकर स्टेनो पद पर तो उनका एकाधिकार ही समझा जा सकता है… पर जोशी मैडम के साथ दाल किसी की भी न गली थी… कार्यालय की सबसे वरिष्ठ स्टेनो की दुसरे दिन ही उनसे किसी बात पर बहस हो चुकी थी.. और फिर बहस का सिलसिला थमा ही नहीं.. आए दिन किसी न् किसी बात पर दोनों भीड़ जातीं… पहले पहल आवाज़ केवल मिसिज़ जोशी की ही आती पर धीरे-धीरे वर्षा जी भी अपना आपा खोने लगीं थीं..

मसला था भी कुछ अलग ही…दरअसल सरकारी कर्मचारियों के आम व्यवहार के विपरीत, वर्षा जी को सुबह जल्दी आने की आदत थी.. पति प्रिंसिपल थे, अनुशासन और घड़ी के पक्के.. नियम से मियाँ बीवी 4:30 का अलार्म लगाकर उठते और सूरज की किरणों का पीछा करते हुए ठीक 6:30 बजे तक अपनी रोज़ाना की गतिविधियों के लिए तैयार हो जाते… पति महाशय बच्चों के कान उमेठने और अध्यापकों को समय का मूल्य समझाने विद्यालय को प्रस्थान करते और मिसिज़ वर्षा, कड़क स्टार्च लगी साड़ी के पल्लू को सलीके से पिन करती अपने दफ्तर चलीं आतीं… अब नियम तो नियम ही ठहरा, वर्षों का अभ्यास था, वर्षा जी को सीट पर करीने से अपनी डाक सम्भालते हुए दफ्तर आधा घण्टा पहले चले आने का.. पुराने अधिकारी उन्हें इस बात के लिए कई बार सम्मानित भी कर चुके थे… ज़ाहिर है, वे अपनी इस आदत पर फूली न समातीं….

पर कहते हैं, समय का पहिया घूमते देर नहीं लगती.. जो ऊपर हो, वो नीचे भी आएगा ही, कुदरत का नियम ठहरा.. हर किसी का अपना दर्पण है, अपनी कसौटी.. उसी पर तौलता है वो अच्छे बुरे कर्मों को… पाप पुण्य की परिभाषा भी सदा एक सी नहीं रहती.. ऐसा ही कुछ हुआ मिसिज़ वर्षा के साथ.. मिसिज़ जोशी राम्पसन्द महिला थीं… दरअसल उनकी सारी जल्दबाज़ी केवल दिखावा हुआ करती… वे किसी भी काम को समय पर पूरा कर लेना, अपने नियमों के विरुद्ध समझतीं… उनका मानना था कि जब तक डेडलाइन न आ जाए, ज़रूरत अपनी चरम सीमा को न छु ले, काम पूरा कर लेना बेवक़ूफी है.. जब चारों तरफ हड़कम्प मच जाये, सामने वाला आपकी अहमियत अच्छे से समझ जाए, तभी पहला कदम उठाना चाहिए…

आप समझ ही रहे होंगे कि नियति ने किस तरह प्रतिकूल व्यवहार के दो व्यक्तियों को आमने सामने ला खड़ा किया था… टकराव तो होना ही था…

Anupama

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