कच्चे सूत में पिरोए मोतियन की माला सी
कतरा कतरा बिखरी है ज़िंदगी
वेदनाओं संवेदनाओं से परे बेजान लाश सी
पल पल सिसकती एक लड़की
सपनों की आंच अरमानों के सांच में ढली सी
दम दम आहें भरती है बावरी
आसमां में उड़ने का ख़्वाब लिए अपाहिज सी
इंच इंच फिसलती है हर घड़ी
खुद ही बहकती दहकती लहकती धौंकनी सी
गढ़ लेती है इक मज़बूत लड़ी
बींधती संघर्षों के मोती स्वाभिमान की सुई से
फिर फिर संवारती है ज़िंदगी
और इस बिखरन और संवरन के बीच अनाम सी
टुकड़े टुकड़े जीती वो लड़की
कभी समय मिले तो छू लेना ह्रदय की वीणा से
झंकृत मृत काठ की वो पुतली !!
Anupama
Recent Comments