Hindi Poetry

मृत काठ की पुतली

कच्चे सूत में पिरोए मोतियन की माला सी
कतरा कतरा बिखरी है ज़िंदगी
वेदनाओं संवेदनाओं से परे बेजान लाश सी
पल पल सिसकती एक लड़की
सपनों की आंच अरमानों के सांच में ढली सी
दम दम आहें भरती है बावरी
आसमां में उड़ने का ख़्वाब लिए अपाहिज सी
इंच इंच फिसलती है हर घड़ी
खुद ही बहकती दहकती लहकती धौंकनी सी
गढ़ लेती है इक मज़बूत लड़ी
बींधती संघर्षों के मोती स्वाभिमान की सुई से
फिर फिर संवारती है ज़िंदगी
और इस बिखरन और संवरन के बीच अनाम सी
टुकड़े टुकड़े जीती वो लड़की
कभी समय मिले तो छू लेना ह्रदय की वीणा से
झंकृत मृत काठ की वो पुतली !!
Anupama

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