Hindi Poetry

मृदा

कुम्हार के चाक पर

तेज़ी सी घूमती ज़िंदगी

सूखी मिट्टी के ज़िद्दी कण

पानी की नरमी में

सहज अपना अस्तित्व खोते

नव निर्माण की श्रृंखला में प्रथम पग

स्वयं की छवि से मुक्ति

परिधियों का बन्धन

आकार व्यवहार का संतुलन

अग्निवेदी में होम होतीं

संचित अभिलाषाएं

सुघड़ हाथों से जन्म लेतीं

नव आकांक्षाएं

पूजा के कलश में

स्निग्ध मृदा

केवल एक अवशेष !!

Anupama

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