नेटफ्लिक्स पर अभी अभी रिलीज़ हुई मूवी, जिसका नाम अपीलिंग था, Mimi (मिमी) कल देखने बैठी। शुरुआत हुई, उत्तर प्रदेश के किसी शहर से, जहां गर्भवती औरतें, उदास और गमगीन माहौल में नज़र आ रही थीं, कुछ बच्चे, आधे कपड़ों और पूरे जोश में खेलते और एक आदमी, उटपटांग अंग्रेज़ी में किसी अमेरिकन को नया स्टॉक देने और लेने की बात कर रहा था!
कितनी ही बातें इस सीन के साथ कौंध गईं! और कहना न होगा, मैं जमकर बैठ गई मिमी देखने!
पर इस शुरुआती सीन के बाद कहानी अचानक से प्रदेश और क्षेत्र दोनों बदल बैठी। सच कहूं तो मैं कुछ देर परेशान ही रही कि आखिर ये यूपी वालों से राजस्थानी एक्सेंट में बात क्यों करवाई जा रही है? खैर, कुछ वक्त और बीता और मैं धीरे धीरे समझने लगी कि राजस्थान के किसी छोटे कस्बे में ही पूरी मूवी चलने वाली है।
और कहानी! उम्म्म… चोरी चोरी चुपके चुपके याद है? सलमान, रानी और प्रिटी ज़िंटा और surrogate mother का फंडा, बस वही समझ लीजिए। जी, सालों बाद, फिर से लगभग वही। पर हां, मामूली परिवर्तन के साथ और पंकज त्रिपाठी की सिग्नेचर कॉमिक स्टाइल, कॉमन – बट – कनिंग – मैन के किरदार के साथ। मैं छोड़ने की सोच ही रही थी कि एक ट्विस्ट आया कहानी में। और अब ट्रैजिक और स्ट्रगलिंग ट्रैक पर मूवी दौड़ने लगी। इस बात ने जिज्ञासा जगा दी और मैं फिर रुक कर देखने लगी।
कुछ वक्त तो स्क्रिप्ट हटकर लगी पर फिर अप्रत्याशित रूप से गोरे के बच्चे को, राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले, संगीत कला से कमाई और कुछ नाम कमाने की आशा रखने वाले लगभग अनपढ़ परिवार ने अपना लिया! काफ़ी मुश्किल से यह निवाला निगला मैंने। और फिर एक के बाद एक ऐसे ही प्रकरण चलते रहे।
मूवी बुरी नहीं, पर विषय की गंभीरता के अनुरूप भी नहीं। कहानी, विषय, स्क्रिप्ट में बहुत संभावनाएं थीं, पर चूक गए डायरेक्टर और डायलॉग राइटर। कुछ हल्के फुल्के क्षण अच्छे थे। कृति सनोन का अभिनय, उनकी पहले की फिल्मों से कुछ बेहतर। और पंकज त्रिपाठी, मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक तो मंजे हुए कलाकार हैं ही। सो, फिल्म झेल लिए जाने लायक तो है, बस सरोगेसी के पीछे भागने की बजाय किसी अनाथ को अपना लेना कहीं बेहतर और मानवीय विकल्प है, यह संदेश जितने मुखर तरीके से जा सकता था, वो नहीं हुआ। और हां, गाने न होते तो अच्छा था। मैं फास्ट फॉरवर्ड कर कर के देखती रही… अनुपमा सरकार
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