कीचड़ में सने पाँव भी कभी कभी महंगे परफ्यूम से कहीं ज़्यादा सुख देते हैं… जब मन मौसम छटपटा कर भीग जाना चाहे तो उमस की भभकती आग भी सुहानी लगने लगती है…एक उम्मीद साथ लाती है न … भीग जाने की…. इंतज़ार जब हद से गुज़र जाये तो वस्ल की रात दूर रह भी नहीं जाती…
दो बदन इक जान सी जोड़ी जब हाथों में हाथ डाले सड़क पार के मेट्रो स्टेशन तक की वॉक में भी रोमांस और रोमांच ढूँढने की ज़िद ले बैठे तो दिल की अनकही ज़ोरों से चिल्लाकर अपने वजूद का एहसास दे ही देती है….
और ऐसे भीगेे मौसम में दो प्रेमी जब सब भूलकर इक दूजे में दुनिया तलाशते हों तो मौसम की रंगीनियाँ भी अपना असर दिखाने से चूका नहीं करतीं.. रुई से बादलों की बेसब्र बूँदें टूटकर गिरती हैं ठोस ज़मीं पे… सुलगती सांसें पिघला देती है कड़े तारकोल को भी… माहौल गर्मा जाता है… और इन कोसी बूंदों तले भीगते बदन कसमसाकर … समा जाना चाहते हैं इक दूजे में….
इश्क़ की खासियत ही ठहरी… सूरतें सीरतें कितनी ही बदलें.. अलामत वही… वही कशिश वही बेचैनी… करीब आने की कसक और जुदाई से डर भी ठीक उतना ही…. उश्शाक इस बात से बेख़बर कि सारी दुनिया की नज़र सिर्फ उन पर टिकी है… ढूँढने लगते हैं एक दूसरे में अपना सच… आधी बनी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर से जम्प करती बूंदों तले बच्चे बन जाने का मन करता है…. सड़क किनारे के एग रोल का टेस्ट किसी फाइव स्टार होटल की महंगी डिशेस से कहीं ज़्यादा लुभाने लगता है और मन चाहता है कि कभी खत्म ही न हो सफर … उसकी गली से मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों तक…..
Anupama
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