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मीनमेख निकालना

कभी कभी कुछ ऐसे शब्द/ मुहावरे टकरा जाते हैं कि आप विस्मित हो उठते हैं कि कितनी ही बार उपयोग करने के बावजूद हम उनका अर्थ नहीं समझ पाए। आज मुझे भी ऐसा ही एक झटका लगा, हरिवंशराय बच्चन की “क्या भूलूं क्या याद करूं” पढ़ते हुए। ज़रा नीचे के वाक्य पढ़िए और सोचिए कि कभी हमने सोचा कि मीन मेख निकालना यानी व्यर्थ की आलोचना करते हुए आपत्ति खड़ी करना या गुण दोष निकालना, असल में मीन – मेष निकालना है!

“इसके विपरीत मेरे बाबा, कहते हैं, खाने में बहुत मीन-मेष निकालते थे। किसी को खाना बनाने में वे शत-प्रतिशत नम्बर कभी नहीं दे सकते थे।”

मीनमेख शायद अपभ्रंश है। वैदिक ज्योतिष में मीन अंतिम यानी बारहवीं राशि और मेष, पहली राशि मानी जाती है। चूंकि राशि चक्र, आकाश को एक वृत्त मानकर विभाजित किया गया है, इसलिए कहना न होगा कि मीन और मेष, एक दूसरे के बहुत क़रीब हैं। और इनमें कौन सी राशि जातक के जन्म के समय उदित थी, कभी कभी बहुत क्लोज़ एनकाउंटर, सो खूब सोच विचार करके ही तय किया जा सकता है कि जातक के गुण और दोष, मीन राशि के होंगें या मेष राशि के। और जब ऐसा सोच विचार बेमतलब किया जाए तो होता है एक मुहावरे का जन्म, व्यंग्य रुप में कहना मीन – मेष निकालना… पढ़ते पढ़ते मुझे ऐसा लगा था, सच्चाई है या नहीं, नहीं जानती थी…

पर दोस्तों, पाउलो कॉल्हो ने अपनी किताब The Alchemist में लिखा था न “And, when you want something, all the universe conspires in helping you to achieve it.”

कुछ ऐसा ही हुआ आज भी… मेरी पोस्ट पढ़कर दीप्ति गुप्ता जी ने मीन मेष की व्याख्या स्पष्ट की। उनका कहना है कि
“ज्योतिषशास्त्र के तहत, राशिचक्र में “मेष” प्रथम राशि है और “मीन” अन्तिम । इन दो राशियों के बीच शेष अन्य राशियॉ हैं । वस्तुत: ग्रहों की गणना करके, यात्रा या किसी काम को शुभ मुहूर्त मे शुरू करने हेतु, शुभ -अशुभ मुहूर्त पर विचार के लिए लोग मेष से मीन राशि तक के ग्रहों के गुण-दोष विचार करते थे और आज भी करते हैं । इस प्रक्रिया या ग्रह-गणना को
पहले मेष-मीन निकालना (Calculation) कहा जाता था । कालान्तर में मीन-मेष हुआ और ष,क्ष आदि अक्षर का लोकभाषा में “ख” उच्चारण होता है, अतैव यह शब्द-युग्म , मीन-मेख बन गया । समय के साथ “मीन-मेख निकालना” कमियाॅ निकालना, नकारात्मक आलोचना करने के अर्थ में रूढ़ हो गया ।

“क्षीरसागर” (दुग्ध सागर) क्षीरनिधि….
क्षीर (दूध) – खीर
शिक्षा – सीख, सिखाना
शिप्र (गति से, तेज़ी से) – छिप्र, (पंजाबी में “छेती”)
क्षमा – छमा
(छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात.)”

दीप्ति जी की इस व्याख्या के बाद स्पष्ट है कि मीन मेष ही अपभ्रंश रुप में मीनमेख निकालना बन गया। दरअसल मुहावरों और लोकोक्तियों के पीछे कोई न कोई महत्व की बात या लॉजिक या फिर अनुभव हमेशा छिपे होते हैं। समय के साथ उनके पीछे के कारण हम भूल जाते हैं और सिर्फ़ लकीर के फ़कीर बनकर रह जाते हैं। वैसे कोई कारण तो इस मुहावरे के पीछे भी होगा। आपको मालूम हो तो कमेंट में ज़रूर बताइएगा… अनुपमा सरकार

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