Hindi Poetry

मज़दूरी

रात भर मज़दूरी कर सिखर दुपहरे
सुस्त सा चाँद छज्जे से झूल रहा था
अकडू सूरज को मस्ती सूझी
अंटी से एक किरण उछाल दी
जवानी के जोश में कूदती फांदती
बिजली सी किरनिया बादल से जा टकराई

दूधिया मेघा मौका पाकर ऊंघ रहा था
रात भर पीपल से बतियाते थक जो गया था
अचानक झटका लगा तो नींद काफ़ूर हो गई
हल्का सा तिलमिलाया फिर ज़ोर से गड़गड़ाया
और कलाबाज़ी खाता कल्लू बादल से जा टकराया

मियाँ का सर चकराया
गुस्से में फुफकार लगाई
आनन फानन में मण्डली जुट आई
बरखा रानी हरकत में आई
बूंदों ने भी जुगत लगाई
दौड़ी भागी धरती पर चली आईं

देखते ही देखते नज़ारा बदलने लगा
दम्भी सूरज घटाओं में छिपने लगा
टेढ़ी सी मुस्कान चाँद के होंठों पर उभर आई
बोला ‘और कर शैतानी बेटा अब दिन भर
बेगार करियो और शाम ढले
आसमान की तिजोरी को दूर से निहारते
अपने घर चलियो, सन्ध्या भाभी
दरवाज़े पर ही खड़ी मिलेंगीं ‘
Anupama

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