Fiction / Fursat ke Pal / Nano fiction

मनपंछी

मनपंछी प्रातःकाल के सूर्य को देखकर जगता है… कड़ी धूप में अपनी परछाईं में शीतलता खोजता है… साँझ ढले घड़ी भर सांस ले.. अटारी से उतरते सूरज को देख मायूस होने लगता है… कि शर्मीला सा चाँद आँगन में खिल आता है… और मनचकोर चांदनी की अठखेलियों में फिर से चहचहाता है… जीवन वृत है …. त्रिज्या एवम् कोण केवल मानक … परिधि नहीं 🙂
Anupama

Leave a Reply