बिन सोचे भस्मासुर को वरदान देकर मुसीबत में फंस जाने और गुस्से में तांडव करते हुए संसार को मिटा देने के विचार के मध्य में ही कहीं बसते हैं मेरे भोले बाबा.. मेरे आराध्य… मेरे शिव…
मानस में तटस्थता और सांसारिक उपक्रम में संतुलन का पाठ पढाते आदियोगी, तुम्हारी कोई तस्वीर उस रूप से नहीं मिलती, जो बचपन से अंतर्मन में स्थापित है.. मेरे लिए तुम चन्दन की ठंडक और दूध पानी की गरिष्ठ शीतलता हो.. एक अहसास हो.. मेरे अपने, नितांत निजी मार्गदर्शक, जो ज़रा आगे चलते चलते मुस्कुरा कर पलट जाते हो.. तुम्हारे धीर गम्भीर चेहरे पर चिंता की लकीरें नहीं, आत्मविश्वास है.. मैं उन अधखुली पलकों में अपना प्रतिबिंब खोजती, तुम्हारे पद चिन्हों में जीवन पथ ढूंढती हूं..
मन से व्रत करती, चाव से तुम्हारी कहानियां सुनती, मंत्र बुदबुदाती उस लड़की के भर भर आंसू बहा, मुठ्ठी भींच कर उठ खड़े हो जाने तक, मन में कहीं गहरे, बहुत गहरे पैठे हो तुम…
तुम्हीं सिखलाते हो कि ज़हर उगलने और निगलने के बीच भी एक अवस्था है… गरल धारण करने की… आंखें मूंद पीछे चलने और आंखों देखे भ्रम से परे भी एक दर्शन है..
चेहरे पर संतोष के भाव, ललाट पर ओज, केश में बहाव समेटे… फाल्गुनी प्रदोष में संसार हित के लिए, समुद्र मंथन से उबरा विष कंठस्थ करते मेरे शिव, तुम अनादि हो, अनन्त हो!!! अनुपमा सरकार
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