My Published Work / Review

मधुराक्षर : अप्रैल-जून 2017 : समीक्षा

“मधुराक्षर” का अप्रैल जून 2017 अंक कुछ दिन पहले मिला.. खूबसूरत कवर पेज और विविध विधाओं को सम्मिलित करती ये पत्रिका, पहली नज़र में ही भा गयी.. कारण रहा बृजेन्द्र अग्निहोत्री जी द्वारा लिखा, हिंदी साहित्य की सामयिक बुराइयों पर चोट करता सार्थक सम्पादकीय..

एक कड़ा रुख अपनाते हुए बृजेन्द्र जी कहते हैं कि “यदि आपके जीवनरूपी कमण्डल में कोई दुर्गुण रूपी छिद्र है, तो समझ लीजिये कि वो टिकने वाला नहीं… हिंदी साहित्य इन दुर्गुणों से अछूता नहीं है.. यश पुरस्कार प्राप्त करने की लालसा, विद्वता का दम्भ और उससे उपजा क्रोध, रचनाकार की रचनाधर्मिता को धीरे धीरे नष्ट करते जाते हैं.. वह स्वयं को जन्मना बुद्धिमान समझने लगता है.. उसे यह लगता है कि उसके द्वारा अपनाई जाने वाली व्यवहार गणित से शेष संसार अनभिज्ञ है.. यह प्राणी आपके आसपास भी ज़रूर मौजूद होगा”

कहना होगा कि एक हिंदी सम्पादक के लिए इस तरह का बोल्ड स्टैंड लेना अपने आप में सराहनीय है..

और जब शुरुआत ही ज़बरदस्त हो तो आप चाहकर भी पत्रिका को बिना पढ़े छोड़ नहीं पाते.. मेरा भी कुछ यही हाल रहा.. और वाक़ई कुछ अच्छी रचनाएँ पढ़ने को मिलीं.. इनमें कात्यायनी सिंह और मनीषा गुप्ता की कहानी “आरज़ू” और “प्रश्न” ने काफी प्रभावित किया.. सच कहूँ तो “प्रश्न” के ही कांसेप्ट पर मैंने भी कुछ समय पहले एक लघुकथा लिखी थी “महीना”.. दरअसल स्त्री के सिर पर बांझ होने का ठीकरा फोड़ते समाज को आइना दिखाना ज़रूरी हो चला है.. और इस विषय पर सशक्त रचनाओं की बहुत आवश्यकता है..

जानी मानी कथाकार सूर्यबाला जी का डॉ ऋचा द्विवेदी द्वारा लिया गया इंटरव्यू, भी काफी रोचक लगा.. मेरे सन्धि पत्र, अग्नि पंखी आदि उपन्यास, 15 से ज़्यादा कहानी संग्रह और पलाश के फूल जैसे धारावाहिक की लेखिका सूर्यबाला जी के मुखर किन्तु विनम्र व्यक्तित्व की झलक उनके उत्तरों में स्वतः दिखी…

साथ ही पढ़ने को मिली अमृतलाल नागर जी की कहानी “धर्म संकट” और विभिन्न कलेवरों की कविताएँ.. “भूचाल” और “सामाजिक न्याय” नाम से दो छोटी सी कविताएँ मेरी भी छपी हैं इस पत्रिका में.. और मेरी प्यारी दोस्त डॉ पारुल तोमर जी की मधुर कविताएं भी, यहां शोभायमान हैं… कुल मिलाकर पठन मनन हेतु एक अच्छी डोज़ है मधुराक्षर का प्रस्तुत अंक

Leave a Reply