Review

Ludo, Movie

लाइफ और लूडो बिल्कुल एक जैसे हैं… हर गोटी का अपना ही रास्ता और उस पर आने वाली मुश्किलें और फ़ायदे भी उसके बेहद निजी… और फिर खेल तब तक ख़त्म नहीं, जब तक हर गोटी घर न पहुंच जाए…

जी, एकदम नया कॉन्सेप्ट, बिल्कुल नई कहानी और काफ़ी मज़ेदार एग्जीक्यूशन, अनुराग बासु की लूडो देखकर खूब मज़ा आया… एक बार फिर एहसास हुआ कि ज़िंदगी में अपने निर्णय, अपने रास्ते और अपनी सोच से ही चला जा सकता है, कौवा हंस की चाल चले या हाथी चींटी की, तो नुकसान ही नहीं होगा बल्कि सिरे से फेल हो जायेगा। और सच कहूं तो ऐसा करना या होना पॉसिबल भी नहीं। हमारी प्रकृति, संस्कार, व्यवहार और परिस्थितियां, सुनिश्चित किए रहती हैं हमारा रास्ता और हमारी मंज़िल। कितना ही भटकिए, कितना ही गोल गोल घूम लीजिए, कितनी ही बार गिरिए उठिए, सच तो यही कि आप चल अपनी लेन में ही रहे होते हैं, लाल गोटी का रास्ता लाल तो पीले का पीला, नीला और हरा भी सिर्फ़ अपने ही रंग की गोटियों को एक्सेप्ट करता है। हां, ये सब दूसरों को अपने रास्ते में आने पर काट ज़रूर सकते हैं और शायद इतना भर ही हमारा रिश्ता इस दुनिया के साथ, बाक़ी सब तो अपने कर्म, अपनी किस्मत।

मूवी के बारे में कुछ ख़ास नहीं बताऊंगी। लगभग हर रिव्यू में आपको हिंट तो मिल ही जायेगा, पर बिना कुछ जाने देखने में असल मज़ा आयेगा। वैसे पंकज त्रिपाठी, फिल्म की हाईलाइट हैं और उनका किरदार सतू भइया, ऐसा कि आप घटिया से घटिया हरकत पर भी, हंस कर रह जाते हैं। इनकी एक्टिंग गजब की है, इतने नेचुरल हैं कि लगता है हर गैंगस्टर का किरदार इन्हीं के लिए बना है। मिर्जापुर में कालीन भइया हों या वासेपुर का सुल्तान कुरैशी, और अब लूडो के सत्तू भैया। सीरियस एक्सप्रेशंस के साथ subtle humour, मुझे पंकज की USP लगती है। और डायरेक्शन, स्टोरी, रोल से परे जाकर, पंकज दर्शकों के मन में बस जाते हैं।

हालांकि राजकुमार राव, इस बार ओवर हो गए, एक्टिंग से लेकर डायलॉग और ड्रेसिंग सेंस, सब बेहद लाउड… कुछ ज़्यादा ही हो गया। वहीं आदित्य रॉय कपूर, जितने हैंडसम हैं, उतना ही उनकी एक्टिंग में दम कम, वे स्क्रीन पर दिखते बहुत बहुत अच्छे हैं, पर उनकी स्क्रीन प्रेजेंस इंप्रेस नहीं कर पाती। वहीं, अभिषेक बच्चन, मुझे हमेशा की तरह, फिर से एक बार बेहद पसंद आए। मुझे उनकी एक्टिंग भी पंकज की ही तरह एकदम नेचुरल और रोल के अनुसार लगती है, जाने क्यों उन पर असफल एक्टर का ठप्पा लगा है। हीरोइंस के बारे में कुछ ख़ास नहीं लगा, सिवाय Pearle Manney के, बिना बोले भी उनका रोल शुरुआत में दमदार था।

बहरहाल, मैंने नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन लिया ही लूडो और क्राउन के लिए था। सो आधे पैसे वसूल हो चुके… अनुपमा सरकार

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