Hindi Poetry

पाती

सुबह के सात बजते-बजते
ये गुलाबी फूल खिलने लगते हैं
सूरज पीपल के कांधे से ऊपर उठ आता है
दूर कहीं रेल का ऊंचा सा साईरन सुनाई देता है
कोयल मैना धनेष भी अपनी भाषा में कुछ कहने से लगते हैं
गिलहरियां दौड़ती टहनियां डोलती सी लगती हैं
पार्क का लाल बैंच सुनहरा चमकने लगता है
और मैं हौले से एक कदम और बढ़ाती हूँ
प्रकृति की अनबूझी पाती है ये
बिन कलम दवात बांच ले!!

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