Kuch Panne

कुछ पन्ने 2

अति संवेदनशील मन स्पंज की भांति अपने आसपास होने वाली घटनाओं, बातों, लोगों से प्रभावित हो जाता है.. जाने अनजाने वे सब उसका एक हिस्सा बनने लगते हैं… और हर तरह का प्रभाव अच्छा ही हो, ज़रूरी तो नहीं, तब बेहद ज़रूरी हो जाता है कि आप खुद को आसपास के माहौल से अपनी सुविधानुसार विलग कर लें… लोगों की उपस्थिति मायने तो रखे पर आपके व्यक्तित्व को रौंदकर नहीं… किसी के आने या जाने से आप पर कोई ख़ास असर न हो क्योंकि उनके होने या न होने से आपके अस्तित्व में कोई हर्जा नहीं होने वाला…

खिलखिलाहट ज़रूरी है, हल्के माहौल में इंसान बेहतर सोच समझ पाता है, पर किसी के अत्यधिक प्रभाव में रहना या उसकी छाया बन जीना, हरगिज़ सही नहीं… एक अलग पहचान है आपकी, ज़रूरी है कि ज़िन्दगी के कुछ पल आप केवल खुद के लिए सुरक्षित रखें जिन पर केवल आपका अधिकार हो..

अपनी खुशियों, आंसुओं, कामयाबी और असफलताओं के लिए भी आप खुद ही ज़िम्मेदार हैं, ये बात समझ में आते ही जीना बेहद आसान हो जाता है.. फिर आप औरों से उम्मीदें रखनी छोड़ देते हैं.. उनके कुछ कहने न कहने, करने ना करने से आपको कोई खास फर्क नहीं पड़ता..

धीमे धीमे ये व्यवहार आप खुद पर भी लागू करने लगते हैं, गीता के उपदेश ‘कर्म कर फल की इच्छा मत कर’ की ओर अग्रसर होने में ये पहला कदम है.. जब आप कर्म और कर्ता को एक दूसरे से अलग करने में सफल हो जाएं, तो उस कर्म के परिणाम की ज़िम्मेदारी से मुक्ति मिलना भी कोई बड़ी बात नहीं रह जाती..

कहने में आसान और करने में मुश्किल लगने वाला ये काम, दरअसल कोई मायने रखता ही नहीं… हम सब कभी न कभी कहीं न कहीं एकदम आश्वस्त होते हैं.. सुबह आँख खुलने पर सूरज की चमक दिखेगी या बादलों की गड़गड़ाहट, इस पर हम सोने से पहले तवज्जो नहीं देते ना.. वो तो सुबह उठकर जो जैसा मौसम दिखे, बस उसके अनुसार खुद को ढाल लेते हैं क्योंकि शायद हम जानते हैं कि हमारे कुछ भी कहने करने से मौसम को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, हम उस पर नियंत्रण करने की असफल कोशिश करते भी नहीं… और ये बात मन में इस तरह रची बसी है कि सोचनी भी नहीं पड़ती.. बाय डिफ़ॉल्ट ही हम इसे मानते और जानते हैं..

पर जाने क्यों जब हमारे जीवन से जुड़ा कोई प्रश्न सामने हो, तो हम बेहद संवदेनशील हो उठते हैं.. जाने कौन कौन से पूर्वाग्रहों से युक्त होकर तो शुरुआत कर पाते हैं और उसमें भी झट कामयाबी या नाकामयाबी के बिन्दुओं पर ही अटक जाते हैं.. कितनी चिंता कंट्रोल करने की.. खुद को, औरों को, रिश्तों को, पैसे को, प्रतिष्ठा को, मान मर्यादा को और भी जाने कौन कौन से सामाजिक मानकों पर खरे उतरने की…

जबकि सच केवल इतना कि ये साँसें गिनकर मिलीं हैं हमे… जैसे ही कोटा पूरा होगा, गुब्बारे से हवा निकल जायेगी… बड़ी-बड़ी बातों को पीछे छोड़ती हुई…
Anupama
#kuchpanne

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