आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगें बहुत भाती हैं मुझे.. लगता है जैसे कागज़ को पंख मिल गए… जड़ खड़े पेड़ों का बादलोँ को छूने का अरमान पूरा हो गया… हवा संग डोलतीं.. नई ऊंचाइयां छूतीं.. इतरातीं… बलखातीं ये कोरी तितलियाँ बिलकुल आज़ाद नज़र आती हैं.. पर ध्यान से देखूँ तो दिख जाती है इक महीन सी डोरी जो बांधे रखती है इन्हें .. पर ये बन्धन कोई ज़बरदस्ती नहीं वरन् आधार है इनकी उन्मुक्तता का …. थोडा और करीब से देखूँ तो नज़र आ जाता है वो प्यारा सा बच्चा जो हाथ में चकड़ि लिए कुशलता से पतंग का संचालन कर रहा है… कब ढील देनी है… कब मांझे को तेज़ी से खींच लेना है… हवा की गति और दिशा का सदुपयोग कैसे करना है .. सब इसी कलाकार के हाथ में है … और तभी एक विचार कौंधता है मन में .. इस पतंग रुपी तन .. डोर रुपी मन …. को नियमित नियंत्रित करते हमारे जीवन का .. सच कुछ यूँ ही तो है न मानव जीवन .. केवल तन के बलिष्ठ व सुन्दर होने से काम नहीं चलता … सुव्यवस्थित मन चाहिये उसे दौड़ाने के लिए .. बल्कि देखा जाए तो तन-पतंग में अपना बल है ही कितना…. मज़बूत मन ही तो है कर्णधार … और इस तन मन की जोड़ी के सूत्रधार हम… परमात्मा का एक छोटा सा अंश ..समस्या का समाधान ढूँढ़ते… रोगों का निदान करते.. ऊंची अट्टारियों से अपनी पतंग को बचाते.. हवा के बहने का पूरा फायदा उठाते.. कुशलता से चप्पू खेते अपनी जीवन नैया के खिवैया .. हमसे बेहतर पतंगबाज़ कोई है क्या 🙂
Anupama
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