Hindi Poetry

कविता की खोज

व्यग्र हो ढूंढते हैं वे कविता
शब्दों को छांटते हुए
बिंबों को छानते हुए
सधे परिमाणों
बंधे प्रमाणों
तंग खांचों में भावों को
ढालते हुए…

शब्द शब्द की विवेचना
अर्थ अनर्थ की विभेदना
तुष्ट कर नहीं पाती
भावना की आलोचना
हो भी क्योंकर पाती!

उलटते पलटते पृष्ठों को
वे ढूंढ लेना चाहते हैं परम सत्य
उनकी कसौटी, अनुभव, समझ पर
कसा, पिसा, उथला निथरा सच!

भाव की नौका को खेते
शब्दों के चप्पू से
कविता की उड़ान को छूते
घिसे पिटे किंतु परंतु से…

विकल हो पुकारते
कहां है कविता?
समझ लिए अलंकार
बिंबों से भी हुए दो चार
पर कविता, वो तो है नहीं कहीं
हमें जैसी जितनी जो चाहिए थी
वो मिलती ही नहीं!!

रिक्त हुआ संसार कवियों से
पलायन कर गई कविता
ठीक उसी समय, जब उन्मुक्त भावों को
बांध दिया गया चंद नामी महावीरों के घेरे में
क्योंकर स्वीकार्य वही जो भूतकाल ने रचा
क्योंकर अनुभूत वही रस जो अब तक संचा

साधना है काव्य कर्म, साधक है कवि
पाना कुछ नहीं, बस खुद में खोना है कहीं
कैसे समझ में आए कविता का ये रूप
कि मापदंडों में जीने वालों के लिए
मन कविता नहीं…

व्यग्र हो ढूंढते हैं वे कविता
क्षुब्ध हो चले जाते हैं…
मन की परतें, उधेड़ने से कब खुलीं !
अनुपमा सरकार

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