Hindi Poetry

कमली

छाँव लगे धूप मुझे
चुभती सी है चांदनी
हैरां करें फूल मुझे
काँटों सी है दीवानगी
सूरज को इकटक देखूँ
तारों से छुपती फिरूँ
गुलमोहरी बातें तेरी
फिर फिर खुद से कहूं
नंगे पाँव दौड़ी जाऊँ
आहट जो तेरी सुनूँ
हुई मैं कमली मौला मेरे
कैसे अब मैं सब्र करूँ !!
Anupama

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