कामायनी, जयशंकर प्रसाद जी रचित महाकाव्य… मनु, इडा, श्रद्धा की कहानी.. जिसमें एहसासों का मानवीकरण करते हुए, जीवन के उतार चढ़ाव को प्रदर्शित किया गया है….
तेज़ वृष्टि के कारण, पूरी पृथ्वी जलमग्न हो चुकी.. केवल मनु शेष रहे हैं, देवों का प्रभुत्व समाप्त होने को है… ऐसे में मनु, एक शिला पर बैठकर भविष्य की चिंता में डूबे हैं..
इस दृश्य को कामायनी के प्रथम सर्ग “चिंता” में दिखलाते हुए, कवि कहते हैं..
“हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन,
एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन।
दूर दूर तक विस्तृत था हिम, स्तब्ध उसी के हृदय समान,
नीरवता-सी शिला-चरण से, टकराता फिरता पवमान।”
धीमे धीमे चिंता को मानव रूप में स्थापित करते हैं जयशंकर प्रसाद और मनु के एकालाप को कामायनी में अंकित.. इसी सर्ग का पाठ मैंने अपने इस वीडियो में किया है..
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