कुछ प्रसंग पढ़ते समय जितने गहरे लगते हैं, उस से कहीं ज़्यादा गहरे हुआ करते है.. रामायण महाभारत और पुराण, ऐसे ही कई बहुआयामी प्रसंग खुद में समेटे है…
कभी काकभुशुंडी की एक कथा पढ़ी थी.. काकभुशुंडी महाज्ञानी थे, परंतु अहंकार के चलते उन्हें श्राप मिला और वे कौवे की योनि में जीवन व्यतीत करने लगे… उन्हें रामकथा का भी पूरा ज्ञान था, पर फिर भी बुद्धि अपना मायाजाल रचने से बाज़ नहीं आयी और राम को अबोध बालक के रूप में देखकर उन्हें अचरज हुआ कि यही विष्णु अवतार हैं क्या..
अब विष्णु जी ठहरे भक्तप्रेमी, अपने ही प्यारे को संशय में कैसे छोड़ देते.. उन्होंने शिशु राम के रूप में काकभुशुंडी को पकड़ा और मुंह में डाल लिया…
अब सोचिए ज़रा, नन्हा सा बालक और कौवे का निगल लिया जाना, हतप्रभ करता है न.. पर हमसे भी ज़्यादा हैरान परेशान तो हुए काकभुशुंडी.. उन्होंने पाया कि राम के अंदर ब्रह्माण्ड बसा है, वो भी एक नहीं, बहुत सारे.. कितने ही अलग अलग तरह के संसार, बोलियां, रूप, रचनाएं.. पर सब जगह राम मौजूद.. अपनी उसी मानव लीला में… भुशुंडी के अचरज के सीमा न थी.. वे परमात्मा की लीला के आगे नतमस्तक हुए और अगले ही पल उन्होंने खुद को वापस शिशु राम के आंगन में जीवित पाया.. उनका संशय दूर हो चुका था और कुछ समय बाद जब गरुड़ को राम के अवतार होने पर शक हुआ तो उन्होंने ही उन्हें ये कथा सुनाते हुए निवारण किया था..
शायद ये कहानी आपने भी पढ़ी हो, या फिर ऐसी ही कोई मिलती जुलती कथा… सदियों में बदलाव बहुत होते हैं और हर वाचक और लेखक की समझ और परख इन कहानियों के रूप भी बदल देती हैं..
पर जानते हैं, मुझे इनकी विविधता लुभाती है.. हर बार नई कड़ियां खुलते हुए देखती हूं.. आज अचानक ही किसी से बात करते ये कहानी याद आ गई.. अब तक हमेशा इस रूप में समझती रही कि हमारे मनीषी यूनिवर्स के राज़ जानते थे.. उन्हें मालूम था या कम से कम विश्वास था कि जीवन केवल पृथ्वी ही नहीं वरन् दूसरे ग्रहों पर भी है.. बहुत सी गैलैक्सीज़ हैं.. और समय के विविध आयाम भी.. कुछ ऐसा ही तो हमने स्टार वार्स में भी देखा था.. और आज भी खोज तो जारी है ही.
कुछ समय बाद जब parallel रिएलिटी का कॉन्सेप्ट सुना, तब भी मुझे ये कहानी भरसक याद हो आई थी… पर आज एक तीसरा आयाम सामने आया.. कर्म और भाग्य से जुड़ा..
मुझे ऐसा लगा मानो भुशुंडी के माध्यम से लेखक ने ये समझाने की चेष्टा की, कि जीवन की राह पूर्वनिर्धारित नहीं है.. इंसान को पूरी छूट दी गई है.. हर कदम पर उसके ही कर्म और निर्णय आगे का रास्ता तय करते हैं.. शायद किसी जन्म में राम, हमारे कल्प के त्रेतायुग से बिल्कुल भिन्न व्यवहार करते हों.. कभी उन्होंने वनवास न जाने का फैसला किया हो या फिर स्वर्ण मृग के आखेट पर जाने से ही इनकार किया हो, और एक अलग ही रामकथा उभर कर सामने आती हो ..
हां, राम केंद्र में अवश्य होंगे क्यूंकि उन्हीं के कर्मों से बात आगे बढ़ेगी पर उसका स्वरूप भिन्न हो सकता है.. और ये पाठ हम सबके लिए सीखना और समझना बेहद ज़रूरी..
रूढ़िवादी नहीं हूं पर मुझे हमारे समाज में रची बसी ये कहानियां, ये कथाएं बेहद पसंद है.. विशुद्ध दर्शन है इनमें..बल्कि हमारे पुरातन ग्रन्थ बहुत ही गूढ़ तरीके से लिखे गए हैं.. उन्हें समझने के लिए बेहद गहरा और निष्पक्ष दृष्टिकोण चाहिए.. कुछ भी रुका हुआ या आउटडेटेड नहीं उनमें.. वे जीवंत हैं.. कड़ियां खोलते हुए… बस आत्मा की आवाज सुनने की ज़रूरत है..
Anupama
#katha
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