Hindi Poetry

काफ्का और मैं

हवा में हल्की सी ठंडक, उनींदी अंखियां
और खिड़की से छनकर आती धूपिली गोलियां
अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से उठने की कोशिश में
यकायक धरती डोलती महसूस हुई

भूकम्प! सोचते ही नस नस झनझना उठी

पर नहीं, आसपास नज़र दौड़ाई
मैं बिस्तर पर नहीं, ट्रेन में थी

शीशे के पार, नज़ारा तेज़ी से बदल रहा था
पीले, भूरे, मटमैले पेड़ों के झुरमुट
धूल सनी घास, सरकंडों के खेत
और दूर तक फैला लाल आसमान
ये मैं कहां? कब? कैसे? कुछ याद नहीं

सर झटकते, आंखें मलते, सीधे उठ बैठी
उन्नत माथे और तीखी नाक वाला
एक धीर गम्भीर युवक
सामने बैठा मुस्कुरा रहा था

कहने लगा, “हैरान क्यों लग रही हो
जानती हो न इस जगह को”
मैंने झट न में सिर हिलाया,
नहीं मुझे कुछ मालूम नहीं
ये ट्रेन कहां चली और तुम कौन?

उसकी टेढ़ी मुस्कान कुछ गहरी हुई
और वो पलट गया
उफ्फ! उसकी पीठ पर तो सख्त खोल था
हाथ पांव कांटों से महीन और
आंखों से ज़रा ऊपर दो लहराते एंटीना

थूक निगल, मैं बुदबुदाई,
तुम, तुम तो वही ग्रेगोर!

वो हंसकर बोला, हां भी और नहीं भी,
हूं तो मैं काफ्का, पर तुमने एक ही कहानी पढ़ी
सो वहीं अटकी हो, मेटामोरफोसिस की दुनिया में

खुद को संयमित करते, मैंने अकड़कर कहा
नहीं, हंगर आर्टिस्ट भी पढ़ी थी सालों पहले
तुम्हारे किरदार मुझे कैदी लगते हैं,
कभी कमरा, कभी पिंजरा
खुले आसमान में उड़ने क्यों नहीं देते उन्हें

काफ्का ने ठहाका लगाया
और मेरा हाथ अपने हाथ में ले, कहने लगा
“तुम उड़ती हो न आकाश में, एक ही काफी है”

“सुनो! ये दुनिया तो वान गोग़ की है न?”
उसने जवाब में सवाल दागा
“क्यों! “रेणु” की भी हो सकती है!”

विचारों के बगूले से बैलगाड़ी चलाता हीरामन
“जा जमाना” कहता दिखाई देने लगा

मैंने झट आंखें बन्द कर लीं
खोली तो टेढ़ी टोपी पहने नेरुदा
निर्मल वर्मा के साथ प्रेम के पहलू
पर गम्भीर चर्चा करते नज़र आए
वहीं कोने में ओवरकोट पहने गोगोल
खेतों और पेड़ों में दर्शन खोज रहे थे
और गोंडवी, दुष्यन्त के साथ
नई ग़ज़ल का मिसरा
टैगोर, अपने चिर परिचित अंदाज़ में
पेपर पर तिरछी रेखाएं खींच रहे थे

सब खुद में गुम थे और मैं उन सबमें
कहते हैं, पहली नज़र कमाल करती है
मैंने भी निगाह दौड़ाई और काफ्का को
फिर से अपने करीब पाया

“सुनो! कुछ कुछ समझ रही हूं
तुम सबने जो लिखा, जो उकेरा
मैंने आत्मसात कर लिया
अब हमारी दुनिया एक है
पर तोलस्तोय क्यों नहीं यहां
वो तो मेरे दिल के बेहद करीब हैं”

काफ्का हौले से बुदबुदाए
“तुम्हे क्या लगता है, तुम रेल में क्यों हो”

जिस्म में बिजली दौड़ गई
गाड़ी प्लेटफॉर्म की ओर जा रही थी
और वो पटरी की तरफ

मैं ज़ोर से चिल्लाई
और हकबका कर उठ बैठी
सामने शेल्फ में रखी
एना कैरेनिना मुस्कुरा रही थी…
Anupama

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