Hindi Poetry

खुशियां

सप्तमी का चांद
लुक्की छिप्पी सी चांदनी
कोहरे की चादर
सितारों से जड़ी हुई
अंगड़ाइयां लेती रात
सुबह-सवेरे भोर की
पहली किरण से मिली
हौले से मुस्काई
ज़ुल्फ़ें झटकीं
सोने की धूल
आईने पे उभर आई
चाँद का नूर
और खिल आया
देखो न अक्स तुम्हारा
कैसे झिलमिलाया
नया दिन मीठी शुरुआत
ढेरों खुशियां संग लाया !

Leave a Reply