तनावग्रस्त माहौल में हल्की फुल्की बातें अक्सर मर्म छू जातीं हैं.. आज कुछ ऐसा ही हुआ.. जहां एक और दफ्तर में ज़्यादातर लोग पैसे की किल्लत को लेकर परेशान थे, सरकार के फैसले और जनता की दिक्कतों का पुलिंदा खोला बन्द किया जा रहा था, वहीं एक सज्जन अपनी ठेठ हरयाणवी में हम सबको सिक्के के दो पहलू होते हैं, की शिक्षा देकर चलते बने…
उन्होंने मज़ेदार अंदाज़ में सुनायी उस लाडली लड़की की दास्ताँ, जिसके पिता ने उसकी शादी इस शर्त पर करवाई थी कि ससुराल वाले उससे कभी कोई काम नहीं करवायेंगे, न घर में न बाहर.. मोटा दहेज दिया गया और साथ ही ससुराल वालों को हिदायत कि जो कुछ चाहिये हो मांग लीजिये, बस बिटिया को सारी सुख सुविधाएं और पूरा आराम मिलना चाहिये..
ससुर ने ज़ोरों से हामी भरी, ठाठ से शादी करी और बहू को घर ले आये… शादी के दो चार दिन रस्मो रिवाज़ में बीते.. खूब सेवा पानी हुआ, जो खाने का मन हो, सो कमरे में पहुंचा दिया जाये.. लड़की खुश और उसके घरवाले भी संतुष्ट..
पर इंसान आखिर कब तक बिस्तर पर लेटे.. दो चार दिन और बीते तो उसने सोचा, टहलते हुए रसोई में ही झांक लूँ… पर तभी सास सामने आ गयी, बोली तू क्यों काम करेगी, आराम कर बेटी, मैं हूँ न, जो चाहिए बोल दे.. लड़की मन मसोस कर वापिस हो ली… कुछ देर में फिर ज़रा सा मन उकताया तो उसने बाज़ार जाकर गोलगप्पे खाने की सोची, पर जैसे ही घर से बाहर कदम रखने लगी, ससुर सामने आ गया, अरे बहू तू क्यों बाजार जाने की तकलीफ उठाती है, हम यहीं मंगा देंगें जो खाना हो.. लड़की फिर घर में वापिस..
सिनेमा का मूड हो तो कम्प्यूटर हाज़िर, बातों का मन हो तो फोन… बस रहना घर में ही.. महीना बीतते बीतते लड़की रुआंसी हो उठी.. मैं तो घर में घुट जाऊंगी.. या तो बाहर जाने दो या कोई काम करने दो.. खाली नहीं बैठ सकती.. हारकर लड़की के पिता को शर्त वापिस लेनी पड़ी..
बात खत्म होते होते हम सबके चेहरों पर मुस्कान थी..
शायद परफेक्ट कंडीशनज़ कभी होतीं ही नहीं और न ही शर्तों पर सुख ढूंढा जा सकता है… जिये जा रे मन बावरे, जो हो सो हो.
Anupama
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