Hindi Poetry

जेठ दुपहरी

अनमनी सी जेठ दुपहरी
चुप सी बैठी बरगद नीचे
तरसे हाय दीवानी
अनगढ़ मेघों ने की साज़िश
मस्ती की फिर ठानी
घमढ़ घमढ़ धम धबड़ धबड़ धुम
जमके बरसा पानी
कारे बदरा घिर घिर आये
उड़ गयी चुनर धानी
Anupama

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