जाने क्यों उनसे लड़ती हूँ
जिन पे सबसे ज़्यादा मरती हूँ
इत्र से भीने एहसासों को
कटु शब्दों में उड़ेला करती हूँ
क़रार तक़रार इंतज़ार इज़हार
इन लफ्ज़ों की बारीकियों को
अक्सर दरकिनार करती हूँ
जाने क्यों तुम से लड़ती हूँ
जब ख्वाबों को खुद ही
यूँ चटकाया करती हूँ!
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