फटता है कलेजा
घुटी चींखें बाहर आने को मचलती हैं
जलतीं हैं आँखें
खारी नदियां समन्दर में कूद पड़ती हैं
तड़पतीं हैं सांसें
कमज़ोर धड़कनें धौंकनी सी चलती हैं
लड़खड़ाते हैं कदम
दलदली ज़मीं धीमे धीमे खिसकती है
गुफा है अँधेरी, रोशनी नदारद, आवाज़ें गुम
दूर दूर तक पसरा है सन्नाटा
खीझता, पसीजता, खुद से ही टकराता
स्याह हुआ आसमां,
तितलियों ने उड़ना
जुगनुओं ने चमचमाना छोड़ दिया
नहीं कोई संगीत बारिश की बूंदों में
नहीं कोई हरकत छुईमुई के फूलों में
नहीं गरजतीं घटाएं, बिजलियाँ नहीं चमकतीं
नहीं खिलतीं कलियाँ, कोयलिया नहीं कूकतीं
अजब सा मंज़र है, धधकती सी टीस
और इन सबके बीच
इक नन्हा सा दिया
तूफानी लहरों में डगमग चलता !
अपनों की तोहमतें, गैरों की बेइंसाफियां
हंसते हुए झेलता !!
सुनो ! इन उँगलियों में जान बाकी है अभी
गोद जाऊंगी कुछ इबारतें नई !!
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