Review

Is Love Enough Sir, Movie Review

Is Love Enough/ Sir
एक और मूवी जो हटकर है, बॉलीवुड की मसाला भीड़ से, अंधाधुंध दौड़ से, चींखते शोर से!

पर देखते हुए सोचती रही, सचमुच अलग है क्या? मुझे तो नेपथ्य में उत्पल दत्त की आवाज़ गूंजती सी महसूस हुई “अवनीश बेटा! हम ने रत्ना को तुम्हारे लिए पसंद कर लिया है। उसमें एक योग्य बहू के सभी गुण विद्यमान हैं। अच्छा खाना बनाती है, सुशील है, मुंह खोलकर बहस नहीं करती, यहां तक कि सर उठाकर देखती तक नहीं। और तो और सिलाई भी जानती है! ” और फिर कहीं रूम में रेडियो को सीने से लगाए, सिल्की जुल्फें लहराते अवनीश, सिर झटक कर कहता, “ये पिताजी भी न ओल्ड फैशंड हैं एकदम 😰”

ख़ैर इस मूवी में न तो उत्पल दत्त की कड़क आवाज़ है और न ही अवनीश की झुंझलाहट… है तो बस एक सीधा सादा सा इंसान, जिसे शादी उस से करनी है, जिसे ट्रस्ट किया जा सके, जो उसकी केयर कर सके, सच्चे मन से जीवन में साथ हो पाए… अब आप कहेंगे कि यह तो अच्छी बात, इसमें भला क्या फिल्म बनानी?

पर नहीं, यही तो है असल ट्विस्ट… कहानी पुरानी सी लग रही है पर बनी बुनी है २०२१ की पृष्ठभूमि में… अवनीश न्यूयॉर्क रिटर्न्ड राइटर है और रत्ना, उसकी मेड… जी, काम वाली बाई, एक विधवा जिसे ससुराल वालों ने सिर्फ़ इसलिए शहर आने दिया है कि खाने को एक मुंह कम हुआ और साथ में कुछ कमाई भी!

उधर रत्ना, इन सबसे बेखबर अपने ख़्वाब बुन रही है, शादी के नहीं, बल्कि बुटीक खोलने के! अब लगा न झटका 😀

कहानी स्लो है, जानी पहचानी है पर ट्रीटमेंट एकदम अलग, आज के ज़माने का… जब योग्य बहू का अर्थ खाना बनाना या घर संभालना ही नहीं बल्कि… बस ये बल्कि, यहीं मैं अटकी, क्या होना चाहिए आजकल की बहू को? सोशल स्टेटस सिंबल, हाई क्लास इंग्लिश स्पीकिंग मॉडर्न लड़की, या फिर एक जीवन साथी, एक लाइफ पार्टनर?

आखिर सत्तर के दशक में जो रिवोल्यूशन शुरु हुआ था, उसमें लड़के लड़की की choice पर ही तो ध्यान देना था, फिर कहां चूके हम कि शादियां और अक्सर प्यार भी वही है, एक कॉम्प्रोमाइज, समाज से स्वीकृत और सम्मानित रिश्ता, जो असल में कितना दमघोंटू और खोखला है, कोई नहीं जानता, दो लोगों के सिवाय!

मुझे Sir इन सवालों को कटघरे में खड़ा करते दिखाई दी, और बस इसलिए पसंद आई। एक्टिंग मामूली है, पटकथा धीमी और डायलॉग्स बहुत कम, अमीर गरीब और शहर गांव का अंतर भी सिर्फ़ भाषा में ही दिखा, इंग्लिश, हिंदी और मराठी के रूप में!

बहुत पॉसिबिलिटीज हैं कहानी में, पर उतनी दमदार बनी नहीं जितनी बन सकती थी, पर फिर भी सोचने को मजबूर करती फिल्में देखनी पसंद हों तो ज़रूर देखिए… अनुपमा सरकार

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