घर जाते हुए अचानक दो औरतें, रिक्शे के सामने आ गईं.. चेहरे घूंघट से ढके, एक हाथ में बच्चा लिए बेतहाशा भागती..
पहली बात जो दिमाग में कौंधी, वो यही कि शायद मुसीबत में हों, कोई अपना बीमार होगा.. अस्पताल के आसपास ऐसे दृश्य देखकर अमूमन यही बात, सबसे पहले कचोटती है न..
पर उनके पहनावे से साफ था, कि पास ही खोदे जा रहे नाले पर काम करने वाली मज़दूरों में से ही हैं.. उनके दौड़ने की दिशा भी वही थी.. रिक्शे वाला बड़बडा रहा था और मैं उत्सुकता से उनकी जल्दबाज़ी का कारण जानने में मशगूल..
कुछ फीट की दूरी तय करते ही मामला साफ हो गया… 4-5 मज़दूर, नाले के पास एक बेंच पर झुके हुए थे.. सोचा, शायद ठेकेदार पैसे बांट रहा होगा, आखिर अपने पसीने की कमाई को लेने की जल्दी किसे नहीं होती…
पर, न…..
मेरे रिक्शे के वहां से गुज़रते-गुज़रते, दिखे वो इंसान, जो इस भागदौड़ का कारण थे.. कड़कड़ाती धूप में, हाथों में दो बड़ी सी ब्रेड और किसी सब्ज़ी का डिब्बा लिए, बेंच पर बैठे हुए, पूरी तन्मयता से पेपर प्लेट्स में, इन मेहनतकश इंसानों की भूख मिटाने का इंतज़ाम कर रहे थे!
न किसी एनजीओ का परचम, न नाम और फोटो का लालच, सिर्फ इंसानियत का धर्म निभाते वो अंकल!
मस्तक अनायास श्रद्धा से झुक गया….
Anupama Sarkar
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