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हिंदी या हिन्दी

भाषा तरल है, भाव और समय के साथ रूपांतरित हो जाना इसकी विशेषता है। पर नियम जानना, व्याकरण और वर्तनी का सही प्रयोग समझना, किसी भी भाषा में अगर आप दक्षता प्राप्त करना चाहते हैं तो अति आवश्यक।

मेरी फ्रैंड लिस्ट में बहुत से हिन्दी के ज्ञाता हैं, लेखक, कवि, कहानीकार और सुधि पाठक भी। अच्छा लगता है जब किसी बात पर एक सवाल उठता है और सालों पीछे जाकर, नियमों को दोहराने का मौक़ा मिल जाता है। आज दोस्त ने अपनी वॉल पर पूछा “हिंदी या हिन्दी”

और मुझे अनायास ही याद हो आया, सच में लंबा या लम्बा, कंचन या कञ्चन, घंटी या घण्टी ???

जी, अब हम बिन्दु या अनुस्वार का प्रयोग धड़ल्ले से करने लगे हैं… इतना कि भूल ही चले कि शुद्ध वर्तनी में दरअसल हर वर्ग का पंचम अक्षर अलग है, उसका उच्चारण और वर्तनी भी अलग। एक बार फिर से हिन्दी की वर्णमाला तक लौटें तो

क, ख, ग, घ के बाद ङ
च, छ, ज, झ के बाद ञ
ट, ठ, ड, ढ के बाद ण
त, थ, द, ध के बाद न और
प, फ, ब, भ के बाद म

बस यही हर वर्ग के आखिरी में जो पांचवां यानी पञ्चम अक्षर दिख रहा है न, इसी को भूलते चल रहे हैं हम!

हिन्दी व्याकरण के अनुसार हर वर्ग का पञ्चम अक्षर अलग है और ख़ासकर जब उसका प्रयोग संयुक्त रूप में किया जाना हो तो हर वर्ग के लिए शुद्ध और सही वर्ण भी अलग है जैसे कि

क वर्ग में गङ्गा सही है, गंगा नहीं
च वर्ग में मञ्जन सही है, मंजन नहीं
ट वर्ग में कण्ठ सही है, कंठ नहीं
त वर्ग में अन्त सही है, अंत नहीं
प वर्ग में आरम्भ सही है, आरंभ नहीं

थोड़ी सी मेहनत है, जो कि गूगल हमें अब करने नहीं देता, बस इसी चक्कर में हम हिन्दी भाषा की इस विविधता और विशेषता से परे हुए जा रहे हैं। पर इस्तेमाल में लाएं या नहीं, हिंदी में थोड़ा घालमेल करके लिखें या नहीं, और प्यारी प्यारी दूसरी भाषाओं को भी हिन्दी में जोड़ लें या नहीं… ये तो ख़ैर अपने मन की और सृजनात्मक लेखन में यह करने की पूरी छूूट भी।

पर व्याकरण के नियमों को पूरी तरह विस्मृत कर बैठना, ठीक नहीं। सो आज हिन्दी दिवस पर यह लम्बी चौड़ी पोस्ट, हम सबकी प्यारी भाषा के नाम। शायद अब थोड़ी थोड़ी यह बात हमें याद रह जाए… अनुपमा सरकार

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