हिंदी में लिंग का प्रयोग
किसी भी भाषा को सीखते हुए तीन बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं
- वर्तनी
- उच्चारण
- व्याकरण
और इन तीनों में से व्याकरण, सबसे विस्तृत विषय है.. यह भाषा का ढाँचा भी कहा जा सकता है… व्याकरण के आधारभूत नियम जाने बिना, किसी भी भाषा को लिखना या बोलना सम्भव नहीं.. इसलिए लेखन के लिए व्याकरण पर पकड़ होना बेहद ज़रूरी है… और हिंदी इसका अपवाद नहीं..
पर हर उस व्यक्ति को, जिसकी सोचने/महसूस करने की भाषा हिंदी नहीं है, लिखते हुए या बोलते हुए, शब्दों के लिंग निर्धारण की समस्या आती है.. आपने अक्सर कुछ ऐसे वाक्य सुने या पढ़े होंगें, जिन्हें शुद्ध हिंदी में व्याकरण और प्रयोग के अनुसार बिल्कुल गलत माना जाएगा पर लिखने/बोलने वालों को शायद इस बात का अहसास नहीं होता या फिर कह सकते हैं कि वे संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण को शब्दों के रूप में तो जानते हैं पर वाक्य बनाते हुए, गलती कर बैठते हैं यथा…
- किशोर गई
- रमा आया
- हम कहे
- मैं सोची
- पेड़ गिरी
- बिजली चमक रहा है
लिंग के भेद
अब एक नज़र डालते हैं कि आखिर ये ग़लतियाँ होती क्यों हैं..
दरअसल बाकी भाषाओं में शब्दों के स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसक लिंग होते हैं.. इनमें से पहले दो सजीव व चेतन के लिए और नपुंसक निर्जीव व जड़ वस्तुओं के लिए प्रयोग करते हैं..
पर हिंदी में केवल दो ही लिंग हैं, स्त्रीलिंग व पुल्लिंग..
जड़ वस्तुएँ जैसे पहाड़, मिठाई या विचार भी हमें स्त्रीलिंग व पुल्लिंग समझकर ही डिसाइड करने पड़ते हैं… और इसके अलावा किसी भी वाक्य में संज्ञा/सर्वनाम के अनुसार ही क्रिया का भी लिंग निर्धारित करना होता है..
जैसे उदाहरण के तौर पर
“किशोर जाता है”
पर
“रमा जाती है”
यहां चूंकि किशोर “पुरुष” है तो क्रिया भी पुल्लिंग “जाता” होगी जबकि “रमा” के साथ वही कार्य “जाती” यानी स्त्री लिंग से होगा..
मैंने अपने एक वीडियो में इस विषय पर ध्यान देने को कहा है
और एक उदाहरण के साथ समझाया है कि लिंग की त्रुटि कैसे आपकी बात का वज़न कम कर सकती है
इस वीडियो में “हवा” को सरसराती न कहकर सरसराता लिख दें तो वाक्य बिल्कुल गलत माना जाएगा… जबकि हवा केवल एक तत्व है, पर हिंदी में उसके लिए हम स्त्रीलिंग प्रयोग करते हैं जबकि जल, जो एक और तत्व है, उसे पुल्लिंग माना जाता है यथा हवा चल रही है और जल बहता है..
रूप, अर्थ और व्यवहार के अनुसार लिंग निर्धारण
अब प्रश्न उठता है कि इन ग़लतियों से बचें तो बचें कैसे…
इसके लिए सबसे पहले तो हमें ये समझना होगा कि आखिर हिंदी में शब्दों का लिंग निर्धारण किस आधार पर किया जाता है…
शब्दों का लिंग निर्धारण तीन तरीके से किया जा सकता है
- रूप
- अर्थ
- व्यवहार
रूप और अर्थ में शारीरिक संरचना के अनुसार शब्द, पुल्लिंग या स्त्रीलिंग होते हैं… इन्हें प्राणीवाचक भी कह सकते हैं, जैसे कि स्त्री, पुरुष, गाय, बैल, घोड़ा, घोड़ी, शेर, शेरनी इत्यादि.. यानि कि जिन्हें देखकर ही पता चल जाए कि वे स्त्रीलिंग हैं या पुल्लिंग, उनके रूप के अनुसार हम लिंग निर्धारण करेंगें.. हालांकि यहां कुछ अपवाद हैं जैसे कि गिलहरी, कोयल, चींटी, जिन्हें हम अक्सर स्त्रीलिंग रूप में ही इस्तेमाल करते हैं…
समूहवाचक शब्द जैसे कि शहर, मौहल्ला, गली, भीड़, झुण्ड इत्यादि…को भी रूप और अर्थ के अनुसार ही माना जाएगा…
पर जड़ वस्तुओंं के लिंग निर्धारण की सोचें तो शारीरिक संरचना के साथ साथ, उनके गुणों पर भी ध्यान दें.. एक आसान तरीका है, कठोर, स्थूल, मज़बूत, तेजस्वी शब्दों को पुल्लिंग और कोमल, गतिमान, लचीली, सुंदर वस्तुओं को स्त्रीलिंग मानकर प्रयोग करना, यानि कि पुरुष और स्त्री में जिस तरह के गुण अक्सर देखे जाते हैं, उन्हीं के अनुसार जड़/निर्जीव वस्तुओं का भी वर्गीकरण करना जैसे कि
वृक्ष या पेड़ पुल्लिंग
पर
लता या टहनी स्त्रीलिंग
जल/पानी पुल्लिंग
पर
नदी स्त्रीलिंग और
सागर/समुद्र पुल्लिंग
नगर, शहर, गांव, मुहल्ला पुल्लिंग
जबकि
गली, सड़क, जाति स्त्रीलिंग
व्यवहार केे अनुसार लिंग निर्धारित करना, काफी आसान हो जाता है और रचनात्मक लेखन में आप भावों को प्रकट करने के लिए, लिंग बदल भी सकते है
मैंने अपने एक वीडियो में इसे समझाने का प्रयास किया है
वाक्य में लिंग प्रयोग
शब्दों के लिंग निर्धारण करना ही काफी नहीं, हिंदी में वाक्य लिखते हुए, विभिन्न शब्दों को जोड़ने में भी लिंग का ध्यान रखना होता है… जैसे कि मैंने पहले भी कहा कि संज्ञा/सर्वनाम के साथ साथ क्रिया भी यहां स्त्रीलिंग या पुल्लिंग होती है… यथा
किशोर खाता है
पर
लता खाती है
यहां चूंकि हमें संज्ञा के लिंग का पता है, हम आसानी से क्रिया का लिंग निर्धारित कर लेंगे पर जब एक वाक्य में एक से ज़्यादा संज्ञा हों तो क्रिया का लिंग निर्धारण करते हुए, फिर से अटक जाते हैं .. जैसे कि
किशोर खा रहा है
पर
किशोर ने मिठाई खायी/भोजन किया
लता बाज़ार जा रही है
पर
लता ने कुर्ता पहना/साड़ी पहनी
यहां लिंग निर्धारण का सबसे आसान तरीका होगा, ये देखना कि केंद्र में कौन है.. कौन सा शब्द क्रिया कर रहा है, उसी का लिंग क्रिया का रूप निश्चित करेगा… किसने किसको किया और कौन क्या करता है.. और किसके द्वारा क्या किया गया
.. ये वाक्य लिखने के तीन तरीके हैं.. यहां क्रिया को “वाच्य” के अंतर से समझना होगा
वाच्य के भेद
वाच्य के तीन भेद हैं
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य
- भाववाच्य
कर्तृवाच्य : जिस शब्द(संज्ञा/सर्वनाम) से कार्य किया जाता है, उसे कर्ता कहते हैं.. अधिकतर कर्ता के अनुसार ही क्रिया का भी लिंग निर्धारण किया जाता है जैसे कि ऊपर के उदाहरणों में पहली पंक्ति में किया गया.. किशोर और लता, पुल्लिंग और स्त्रीलिंग होने की वजह से “खा रहा है” और “जा रही है” क्रिया रूप लाए
पर इन्हीं उदाहरणों की दूसरी पंक्ति में “किशोर ने मिठाई खायी” पर “भोजन किया..
लता ने कुर्ता पहना पर साड़ी पहनी
यहां, अंतर कर्मकारक वाच्य के कारण आया… इन वाक्यों में कर्ता से अधिक कर्म यानि कि “जिस वस्तु पर कर्ता की क्रिया का असर पड़ा” वो केंद्र में हो जाती है और उसी के अनुसार लिंग निर्धारित किया जाता है…. मिठाई स्त्रीलिंग, कुर्ता पुल्लिंग है और केंद्र में रहने की वजह से या वाक्य का फोकस इन पर होने की वजह से क्रिया पर अपना प्रभाव छोड़ता है…
पर इन दोनों के अलावा सृजनात्मक लेखन में भाववाच्य बहुत महत्व रखता है… मसलन
मैंने सोचा
मैंने कहा
यहां कर्ता चाहे पुल्लिंग हो या स्त्रीलिंग, क्रिया का रूपांतर “भाव” करेगा.. अगर भाव जैसे कि विचार और शब्द, पुल्लिंग हैं तो क्रिया पुल्लिंग ही होगी, कोई लड़की अपने लिए “मैंने सोची” नहीं प्रयोग कर सकती..
इस तरह के वाक्यों में लिंग निर्धारण करने के लिए हमें अनुपस्थित शब्द पर ध्यान देना होगा… जैसे कि मैंने सोचा में “विचार” वाक्य में नहीं है, पर सारा फोकस फिर भी उन पर ही है.. सोचने की प्रक्रिया के केंद्र में “विचार भाव” है, इसलिए क्रिया का लिंग पुल्लिंग ही होगा…
भावों का लिंग निर्धारण हमें जड़ वस्तुओं की तरह ही करना है यानि कि ये देखकर कि क्या उनके व्यवहार में पुरूषोचित गुणों की अधिकता है या फिर स्त्रीयोचित गुणों की..
कठोर, स्थूल, स्थिर, अडिग, तेजस्वी भाव पुल्लिंग
कोमल, गतिशील, लचीले, सुंदर भाव स्त्रीलिंग
व्यवहार केे अनुसार लिंग निर्धारित करना, काफी आसान हो जाता है और रचनात्मक लेखन में आप भावों को प्रकट करने के लिए, लिंग बदल भी सकते है
हिंदी में लिंग निर्धारण, व्याकरण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है… आज जो नियम बताए, उन्हें ध्यान में रखेंगे तो काफी मदद मिलेगी हालांकि अपवाद भी बहुत हैं, पर फिर भी शुरुआती दौर में कम से कम रूप, अर्थ, व्यवहार और वाच्य को ध्यान में रखना बहुत उपयोगी होगा
AnupamaSarkar
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