चारों ओर फैला गहरा धुंआ… आँखों में किनमिन, सांसों में किरकिर.. शहर का हाल अजब.. दिन में सूरज फीका.. रात में चाँद सितारे नदारद.. फिज़ा सर्द है पर हवा लापता.. शायरी तो छोड़िये, कलाम भी मानो हड़ताल पर बैठ गया.. पर फिर भी ये मन, इस पर ज़ोर कहाँ… जाने क्यों भागे जा रहा है… कहीं दूर… मीलों फैला रेतीला मैदान… काली अँधेरी रात और कैंप फायर का धुआं.. गजब नज़ारा… आसमां के स्याह पर्दे पर चमचमाती अंगारियाँ… आसपास बैठे हंसते गुनगुनाते लोग… संगीत की लहरियां, बातों में सरगरमियां… पायल की झंकार.. गिटार की टँकार.. समंदर का शोर… लहरों की तान पर सितारियों और जलबूदों की जुगलबंदी… चाँद की टेढ़ी मुस्कान, सीपियों का शर्माकर बालू में छिप जाना… पास ही एक छतरीनुमा इमारत… छज्जे से छनकर आती नमकीन बुँदियाँ.. होंठों से छूकर, गले को तरबतर करती अठखेलियाँ.. करिश्माई माहौल, हसीन ख़्वाब… इन पर पाबंदियां.. न न… कभी कभी खुशनुमा ख्यालों का हक़ीक़त बन जाना, मुश्किल भले लगे, नामुमकिन कहाँ..
Anupama
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