पहले गुरु का केवल सम्मान करती थी.. उन की प्रतिभा को नमन कर.. एक निश्चित दूरी बनाए रखने की भरसक कोशिश होती थी.. कई पूर्वाग्रह थे मन में.. कुछ नियम.. सलीके.. जो मुझे उनके समकक्ष खड़े होने की अनुमति प्रदान नहीं करते थे.. अब थोडा बदल गई हूँ… ज़िंदगी को गुरु बना लिया है.. कहीं कोई सख़्त कानून नहीं.. सबसे सीखती हूँ.. सबके साथ चहकती हूँ.. ज्ञान अर्जित करने के लिए सुपात्र होना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि योग्य गुरु का होना.. अब मेरे शिक्षक मेरे अंतरंग मित्र हैं.. सुख दुख.. गुण अवगुण.. पारदर्शी हो चुके.. रंगमंच पर बिना रियाज़ किए ज़िंदगी का परफॉरमेंस एन्जॉय कर रही हूँ.. घटते बढ़ते चाँद और मूडी सूरज के साथ खुलकर बतियाईए.. हवा के साथ चहकिये.. गिलहरियों संग दौड़ लगाइये.. चंद मासूम पल मुश्किलें आसान कर देते हैं..
Anupama Sarkar
#fursatkepal
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