Hindi Poetry

गुलाबी चुनरी

माथे पर झूमर नाक में नथुनी लटकाए
सर पर गुलाबी चुनरी पांव में पायलिया सजाए
मुद्दत बाद आज वो खुलकर खिलखिलाई थी

सोलह सिंगार की खुमारी उसके सर चढ़ी थी
पिया-मिलन का अहसास समझा था सखियों ने
देर से ही सही बसंत बन बहार सजी थी

पर वो क्या जानें
ये सब उसके लिए सिर्फ बेडीयां थीं
ठहरे आंसुओं में डूबे रिश्ते की सिसकियां थीं

पर आज सचमुच बसंत
उसके ठौर पर दस्तक देे आई थी
महीनों बाद प्रेमी की खबर आई थी

दिल में एक नई उमंग वो निकल पडी
होंठों पर प्यार का तराना सजाए
उससे मिलने जो दुनिया की नजर में पराया था
और उसके लिए उसका इकलौता अपना

पीले फूलों के बीच वो सरपट भागी जा रही थी
दिल की धडकनें हवा की तेजी को मात दे रही थी
वो जमीं पर नहीं आसमां में उड रही थी
और यकायक वो गश खाकर गिर पडी
ठीक सामने प्रेमी की लाश पडी थी
समाज के ठेकेदारों की दरिंदगी
इंसानियत की सीमा कब की भूल चुकी थी
गुलाबी चुनरी खून के छींटों से पटी थी
Anupama

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