माथे पर झूमर नाक में नथुनी लटकाए
सर पर गुलाबी चुनरी पांव में पायलिया सजाए
मुद्दत बाद आज वो खुलकर खिलखिलाई थी
सोलह सिंगार की खुमारी उसके सर चढ़ी थी
पिया-मिलन का अहसास समझा था सखियों ने
देर से ही सही बसंत बन बहार सजी थी
पर वो क्या जानें
ये सब उसके लिए सिर्फ बेडीयां थीं
ठहरे आंसुओं में डूबे रिश्ते की सिसकियां थीं
पर आज सचमुच बसंत
उसके ठौर पर दस्तक देे आई थी
महीनों बाद प्रेमी की खबर आई थी
दिल में एक नई उमंग वो निकल पडी
होंठों पर प्यार का तराना सजाए
उससे मिलने जो दुनिया की नजर में पराया था
और उसके लिए उसका इकलौता अपना
पीले फूलों के बीच वो सरपट भागी जा रही थी
दिल की धडकनें हवा की तेजी को मात दे रही थी
वो जमीं पर नहीं आसमां में उड रही थी
और यकायक वो गश खाकर गिर पडी
ठीक सामने प्रेमी की लाश पडी थी
समाज के ठेकेदारों की दरिंदगी
इंसानियत की सीमा कब की भूल चुकी थी
गुलाबी चुनरी खून के छींटों से पटी थी
Anupama
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