Fiction

घड़ी

घड़ियों का बहुत शौक था उसे। दसवीं पास करने पर मिली थी पहली घड़ी। नंबर तो ज़्यादा नहीं आए थे, पर जिसके पास होने के ही लाले पड़े हों, उसके ६० प्रतिशत नंबर आ जाना कोई छोटी मोटी बात तो नहीं। लाईन पर ही सही, लड़के ने पहली डिवीजन छू ली थी। तोहफा तो बनता ही था।

बस वो दिन था और आज का दिन, वर्मा जी का घड़ी प्रेम नित नई ऊंचाइयां छू रहा था। वक्त ने साथ हालांकि कम ही दिया था। बामुश्किल दफ्तर में छोटे बाबू की नौकरी हासिल कर पाए थे। पर शौक बड़ी चीज़ है। दूसरे आदमी जो पैसा सिगरेट शराब में उड़ाते, इनकी घड़ियों में खर्च हो जाता था। पर शिकन न आती चेहरे पर, हंसते मुस्कुराते रहते हर पल।

सौ रूपये से लेकर चार हज़ार तक के अनमोल रत्न शामिल थे, इनके रंगबिरंगे क्लेक्शन में, सोने-चांदी, स्टील, प्लास्टिक, चमड़े वाले स्ट्रैपस से सजे। नित नई लेकर जाते जेब में और ठसक से मेज़ पर जमा देते। पहन नहीं पाते थे, कलाई बेहद कमज़ोर हो चुकी थी, बोन कैंसर की वजह से। अच्छा-बुरा वक्त घड़ियों का मोहताज कहां !
Anupama

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