कुछ दिन पहले रेडियो पर मधुबाला जी के गीत सुन रही थी। बीच बीच में रेडियो जॉकी उनके जीवन की कुछ खट्टी मीठी सच्चाइयों से भी वाकिफ़ करवा रहे थे। सुनकर बेहद आश्चर्य हुआ कि इतनी मनमोहक मुस्कान, खूबसूरत चेहरे और बेहतरीन कला की मालकिन दरअसल अपने जीवन में एक गंभीर बिमारी से जूझती रही थीं और मात्र 36 वर्ष की आयु में इस दुनिया से कूच कर गईं।
लाखों दिलों की धड़कन मधुबाला के दिल में छेद था और उस समय यह बिमारी लाईलाज। नतीजा यह कि भारतवर्ष ने एक बेजोड़ कलाकार को खो दिया।
उनका यूं छोटी सी उम्र में दुनिया से चले जाना, पता नहीं क्यों मुझे कुछ ज़्यादा ही झिंझोड़ गया। ऐसे लगा मानो कोई छत्तीस का आंकड़ा हो कला और काल के बीच।
मेरा अति जिज्ञासु मन ये जानने को बेचैन हो उठा कि क्या और कोई नामी गिरामी हस्तियां भी हैं इस दुनिया में, जो अभूतपूर्व कला के स्वामी होने के बावज़ूद मौत के जल्द शिकार हो गए।
आप यकीन नहीं करेंगें, ऐसे एक-दो नहीं बल्कि दसियों नाम मेरे ज़ेहन में कौंध गए। इनमें जो सबसे पहला नाम मेरे दिलोदिमाग में चक्कर काट रहा है, वो है हिंदी गज़लों के पुरौधा माने जाने वाले दुष्यंत कुमार जी।
क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत इनकी रचनाएँ किसी के भी खून में उबाल ला सकने में सक्षम हैं।शायद आपने भी सुनी हो इनकी ये गज़ल :
“हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए”
परंतु प्रकृति की विडंबना तो देखिये, अपनी लेखनी से बुनियाद हिला देने में सक्षम दुष्यंत कुमार जी मात्र 45 वर्ष की आयु तक ही जीवित रह पाए। न जाने कितनी अनलिखी गज़लों और अजन्मी कविताओं को साथ लेकर स्वर्ग आरोहित हो गए।
दुष्यंत जी के पीछे-पीछे मुझे सादत हसन मंटो साहब दिखाई देते हैं। 200 से अधिक कहानियाँ गढ़ने वाले ये उर्दू लेखक अपने समय के बेहतरीन कहानीकार माने जाते थे। बल्कि इनके नाटक और अफसाने तो आज भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही मुल्कों में लोकप्रिय हैं। ये जनाब भी कुल 42 वर्षों तक ही धरती पर रहे, पर जाने कितने दिलों को छू गए।
ये हाल हमारी सरहदों तक ही सीमित नहीं, इंग्लैंड भी इससे कुछ अछूता नहीं। ब्रोंटे सिस्टरस् का नाम किसी भी अंग्रेज़ी पुस्तक प्रेमी से छुपा नहीं है। इनमें सबसे छोटी बहन ऐन मात्र 25 साल की उम्र में स्वर्गवासी हुईं लेकिन उनके लिखे उपन्यास के कद्रदान आज भी मौजूद हैं। और उनकी बड़ी बहन ऐमिली का तो कहना ही क्या। उनका 200 साल पहले लिखा वुदरिंग हाईट्स आज भी रोंगटे खड़े कर देने में सक्षम है। पर ये अभूतपूर्व प्रतिभाशाली लेखिका भी केवल 30 वर्ष तक ही पृथ्वीवासी रहीं।
कीट्स, शेली और बायरन जैसे महान अंग्रेज़ी लेखकों का भी हष्र कुछ ऐसा ही रहा है।
ये सभी महान हस्तियां ज़्यादा समय नहीं बिता पाईं इस नश्वर देह में, पर उनके विचार, उनकी सोच, उनकी लेखनियां तो अजर अमर हैं। आज भी उनकी स्मृतियों के चिन्ह हमारे मानस पटल पर उनकी यादों को तरोताज़ा कर देते हैं।
काल और कला की ये आंखमिचौली मुझे बेहद विस्मित करती है। जहां एक ओर छोटी उम्र में इनकी मौत का ज़िम्मेदार मैं भाग्य को मानती हूँ वहीं दूसरी ओर लगता है कि सर्वोपरि स्थान पर ज़्यादा देर तक रह पाना शायद कभी भी आसान नहीं होता। मेरे एक सुलझे हुए मित्र का मानना है कि हर कामयाब इंसान बेहद अकेला होता है। अपने एकाकी जीवन से निजात पाने के लिए कृत्रिम खुशियों का पता ढूंढता है। कभी नशे में तो कभी व्यसन में और शायद ये अप्राकृतिक सुख ही उनकी देह को गला, आत्मा को इस दुनिया को छोड़ देने पर मजबूर कर देते हैं।
खैर, सच्चाई क्या है, कौन जाने! परमात्मा ने जीवन मृत्यु का राज़ तो केवल अपने पास ही रखा है। फिर 36 साल हों या 100 का गज़ब आंकड़ा, भलाई तो दिल खोलकर जीने में ही है। अंत में बस यही कहना चाहूंगी कि :
कुछ ऐसा कर गुज़र इस ज़मीं पर!
फरिश्ते भी सजदा करें तेरी मौत पर!!
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