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गया और फल्गु नदी

गया का नाम बहुत सुना था पर आज मालूम पड़ी एक गज़ब बात… यहां फल्गु, नाम की एक ऐसी नदी है, जो सतह पर सिर्फ और सिर्फ बालू का ढेर है और ज़मीन से कुछ फीट नीचे, पानी से लबालब.. छ्ठ में इस सूखे रिवर बेड में छोटे छोटे कुंड खोद कर पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है..

किंवदंती के मुताबिक राम और सीता जब गया से गुज़रे तो पिंड दान करने के लिए फल्गु नदी के किनारे रुके.. उस समय ये नदी भारत की मुख्य नदियों में से एक हुआ करती थी.. राम सामग्री एकत्र करने में जुट गए, उन्हें देर होती देखकर और दशरथ जी की आत्मा को प्रतीक्षा में बेचैन देखकर… सीता जी ने ही बालू देकर, साक्षी के रूप में फल्गु, गाय, वट वृक्ष(बरगद), तुलसी, ब्राह्मण और अग्नि को समक्ष रखकर पिंड दान कर दिया…

पर जब कुछ देर में राम वापिस लौटे तो बरगद को छोड़कर बाकी सभी ने पिंड दान हो चुका है, ये मानने से इंकार कर दिया… गुस्से में सीता जी ने उन सबको श्राप दिया कि फल्गु नदी जब तक गया में बहती है, सतह के ऊपर नहीं दिखेगी.. गाय का केवल पिछला हिस्सा पूजनीय होगा, गया में तुलसी नहीं लगेगी, ब्राह्मण दान से असंतुष्ट रहेगा और अग्नि का कोई मित्र नहीं होगा.. हां, वट वृक्ष अपनी बात पर अडिग रहा था, इसलिए उसे वरदान मिला कि गया में उसकी विशेष अर्चना होगी और बिना बरगद के पिंड दान सफल न होगा..

चूंकि सीता जी ने यहां बालू से पिंड दान किया था, तो आज भी मान्यता है कि यहां बालू मात्र से पितर संतुष्ट हो जाते हैं… मान्यताएं हैं, कहानी समझकर किनारे कर सकते हैं या फिर इस बात पर गर्व महसूस कर सकते हैं कि हमारे देश में इंच इंच पर प्रकृति का एक नया रूप दिखता है…

इस नदी और माहत्म्य के बारे में Bipin Jha जी की पोस्ट पर पढ़ा और फिर गूगल पर भी खोजा.. आप भी देखिए एक तस्वीर… कमाल तो है…
Anupama Sarkar

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