Fiction / Fursat ke Pal

फुर्सत के पल : 8

दूध की दो बूँद पानी में गिरते ही एक हल्का सा परिवर्तन ले आती हैं.. रंग, रूप, प्रकृति में… हाँ, दूध का स्वभाव है, आत्मसात हो जाना, इसलिये पूर्ण रूप से घुल जाता है, पानी के छोटे छोटे कणों में… अपनी चिकनाहट, श्वेत रंग, मधुर स्वाद को विलुप्त करता.. पर कुछ तो बदलता है पानी में भी, उसके तन्तुओं में खिंचाव, अणुओं में हलचल और एक बाह्य पदार्थ की उपस्थिति का अहसास… असम्भव है पानी का पहले सा रह जाना.. बाहरी तौर पर दिखावा किया जा सकता है, पर आंतरिक ऊर्जाएं बदल चुकी होतीं हैं.. ये दो बूँद दूध पानी में, दो बूँद अम्ल दूध में, दो चुटकी नमक-हल्दी दाल में, दो टूक बातें ह्रदय में मायने रखती हैं… दो बूँद विष के चखे मीरा ने, कृष्ण दीवानी हो चली.. हलाहल गटका शिव ने, धरा शक्तिमय हो गई… दो कांपते होंठों की पुकार पर, भिखारन के सूखे वक्षों में दूध उतर आया.. दो बूँद बरसात की छुअन सदाबहार के नन्हे से पौधे में, ढेरों कलियां सजा गई.. कम ज़्यादा नहीं कुछ भी, कोई भी प्रकरण, सम्वाद, भाव बिना कारण नहीं… अन्तस् तक उतर जाता है, बाह्य दीवारें लांघता हुआ.. समुद्र के सीने में लहरें दम तोड़ती हैं, प्रवालों की चट्टानें अपने अवशेष… कहीं गहरे… पृथ्वी में हलचल होती है… दहकता लावा अपनी दिशा बदलता है और हज़ारों फुट ऊंचे पहाड़ से फूट पड़ता है.. कोई तारा संकुचित होते होते अविश्वसनीय रूप से ताकतवर हो जाता है, लाखों करोड़ों धूल के कणों को खुद में समाहित करते हुए.. कोई धूमकेतू बन हज़ारों वर्षों के भ्रमण पर निकल पड़ता है.. कोई ग्रह अपनी कक्षा में विचरण करने को विवश तो कोई उल्का अपनी सीमाओं को तोड़ने में तत्पर.. कारण वही.. कहीं न कहीं कोई हल्का सा परिवर्तन.. कोई कैटेलिस्ट जो प्रक्रिया में सहायक, और नितांत शांत चाँद में क्रेटरों का जन्म.. विविध है संसार.. मायावी.. असीम सम्भावनाओं से लिप्त… असम्भव, अभूतपूर्व कुछ भी नहीं…

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