शहद की बूँद सी पारदर्शी आवाज़, पूर्व नियोजित दिशा में तेज़ी से बढ़ते हुए, हौले से जल के मध्य में तरंगें उत्प्न करती हुई.. ठीक वैसे ही जैसे गोधूलि के समय प्रकृति में असीम शांति और पवित्रता हमजोली बनकर मुस्कुराते हैं… वैसे ही जैसे उत्तर दिशा में उदित तारा, चन्द्रमा की धवलता अनायास ही पश्चिम की लालिमा में बिखेर देता है… पीपल की नवजात हरी पत्तियां मदमस्त हवा के झोकों से उन्मादित हो उठती हैं.. गत वर्ष के सूखे बीज शीत निद्रा त्याग, कोमल कोंपलों में परिवर्तित होने लगते हैं, कलियों के रूप में असीम सम्भावनाओं को साकार करते हुए… बस यूँ ही एक स्वप्न मन की गहराइयों से उभर आता है.. और वो गा उठती है कोई गीत.. बस यूँ ही, कारण नहीं होता गुनगुनाने का…नितांत अप्रयोजित क्रिया है ये…मन के किसी कोने से कोई धुन बिना किसी ठोस प्रयास के होंठों पर सरक आती है.. शब्द-माला में पुष्प-वर्ण लयबद्ध हो जाते हैं.. और अंतर्नाद बाह्य स्वरूप प्राप्त कर मुखरित हो उठता है.. और जन्मता है जीवन-संगीत…
Recent Comments