लाल पीले फूलों की लड़ियां
दीवारों पे लटकती
पुरानी जर्जर इमारतें भी
नए रंगों में चहकती।
जिन बेजान पत्थरों में
अपनी याद भी बाकी नहीं
पुष्पों के संपर्क से
सजीव हो चले
ज्यों पैदा ही हुए हों
महकने के लिए।
बसंत क्या आई
रूप ही बदल गया
दीवारें बोल उठीं
पेड़ झूमने लगे
हर पत्ता नया सा चमकता
डाली डाली पर नूर बरसता।
स्वागत करता हो जैसे
नवजीवन का
फूलों के सौंदर्य सा।
सच उत्साहित बालपन
सान्निध्य मात्र से
नई ऊर्जा का संचार
करने में समर्थ
आवश्यकता केवल
खुले दिल से
स्वागत करने की।
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