Hindi Poetry / Recital

फूलों का पुल

अमलतास के पीलों से जकरंदे के नीलों तक
एक पुल बनाना चाहती हूँ
गुलमोहर के आगों से सेमल के लालों का
रिश्ता साधना चाहती हूँ।

गूंथना चाहती हूँ इनकी चोटियां
देखना चाहती हूँ इनकी यारियां।

सोचो न, यूं ही किसी रोज़
सेमल के फूलों को गुलमोहर के
पत्तों का साथ मिल जाए तो!
ऊपर जकरंदा बैंगनी हो इतराए और
अमलतास शर्म से सुनहरा हो जाए तो!

बन जाए इक नया आयाम
मिले प्रकृति के सौंदर्य को चरम स्थान
हो सृजन इक नया, हर भंवरा गुनगुनाए तो!
सच यूं ही फूलों का पुल बन जाए तो! अनुपमा सरकार

अब आप ये कविता “फूलों का पुल” youtube channel मेरे शब्द मेरे साथ पर भी सुन सकते हैं, मेरी आवाज़ में।

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