Review

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, नेटफ्लिक्स पर अभी अभी देखी.. विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म और राजकुमार राव की मौजूदगी, देखे बिना कैसे रहती..

पर मूवी बहुत ही स्लो है, और अलग होने की कोशिश में ओवर ड्रामैटिक भी.. ये नहीं कहूंगी कि सब्जेक्ट अच्छा नहीं था.. है, और काफ़ी हद तक ज़रूरी भी.. जिस समाज में हम अभी प्रेम संसार में जात, गोत्र और सोशल स्टेटस में उलझे हैं, वहां दो लड़कियों की प्रेम कहानी, सचमुच बोल्ड सब्जेक्ट है..

सेक्सुअल प्रेफरेंस पर फिल्म बनाना और एक संवेदनशील मुद्दे को साफगोई से पेश करना, आसान तो बिल्कुल नहीं.. और सच कहूं तो कुछ हद तक ये फिल्म, कम से कम इस कसौटी पर तो खरी उतरती है कि लेस्बियन रिलेशनशिप को कॉमेडी नहीं बनाया..

पर इसके अलावा बाकी सभी कसौटियों पर फिल्म बुरी तरह फेल होती है.. मुझे सोनम और अनिल कपूर में वैसे भी एक्टिंग की पॉसिबिलिटी कम ही दिखती है, तिस पर जूही की ओवर एक्टिंग तो बहुत ही ख़राब, इस मामले में उन्होंने “प्रेमा जी” को भी पीछे छोड़ दिया इस फिल्म में..

राजकुमार एक्टिंग के पायदान पर जमे रहते हैं, और काफ़ी हद तक सफल भी रहे.. पर अफ़सोस उनका साथ देने में सोनम स्ट्रगल करती दिखती हैं.. उनकी जगह अगर रेजिना केसेंड्रा होती, जिन्होंने सोनम के लव इंटरेस्ट कुहू की भूमिका निभाई है, तो शायद फिल्म कहीं ज़्यादा प्रभावशाली दिखती.. अभिषेक दुहन, सोनम के भाई बबलू की भूमिका में हैं, और उनकी एक्टिंग भी काफ़ी अच्छी है.. सीधी सी बात तो ये कि इस फिल्म को बड़े नाम डुबो बैठे.. नामी गिरामी एक्टर्स की जगह बेहतर अभिनय को तवज्जो दी जाती तो मूवी इंप्रेसिव लग सकती थी..

फ़िलहाल तो मैं इस से कहीं भी, कैसा भी जुड़ाव महसूस नहीं कर पाई.. सब्जेक्ट अलग है, नया है पर ट्रीटमेंट वही पुरानी.. फिल्म देखना चाहें तो देख सकते हैं, कोई भी सीन आपकी सेंसिटिविटी को प्रभावित न करे, इसका खास ख्याल रखा गया है.. पर मेरे हिसाब से ये विधु विनोद चोपड़ा की सबसे बोरिंग फिल्म है, न तो “क़रीब” जैसा स्मॉल टाउन इफेक्ट है न “मिशन कश्मीर” की इंटेंसिटी और न ही “3 इडियट्स” वाला कमाल.. अनुपमा सरकार

Leave a Reply