Hindi Poetry

दुख

दुख जाने क्यों रूई की गठरी से लगते हैं
आंसुओं से भीग इतने वज़नी हो जाएं
उठाए भी न जाएं
खुशनुमा फिज़ाओं में फूलों से खिल जाएं
आंगन में धूप से खिलखिलाएं
हाथ छू भी न पाएं

पर रहते हैं संग हमेशा
उसके घर से पोटली बांध लाए थे
वहीं बोझ हल्का कर पाएंगे
तब तक साथी बस यूं ही कभी रोएंगें
कभी मुस्कुराएंगें
पर साथ छोड़ न पाएंगें!!
Anupama

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