Hindi Poetry

ख्वाबों की कलम

ख्वाबों की कलम ले निकली मैं
एक नया इतिहास रचने
जहाँ हर पल एक नया अहसास हो
जीवन की सच्चाइयों से साक्षात्कार हो।

जज़बातों की सयाही में डुबो ये अनोखी कलम
देखे मैंने कई सपने कुछ अनोखे कुछ वही अपने
जहां थी शांति सुकून से भरी
जहां थी हर घड़ी उम्मीद से भरी।

बहुत खुश थी मैं पाकर यह नया हथियार
विश्व विजय को थी मैं पूर्णत तैयार।

पर यह विजय स्वप्न कुछ भिन्न था
मार काट का कोई स्थान न था
था तो केवल निर्दोष प्रेम
कलकल बहता खुशी से चहकता।

अपनी इस ऊंची उड़ान को मैं
आवाज़ देना चाहती थी
खवाबो की कलम का
जज़बातों की सयाही का अद्भुत संगम चाहती थी।

पर कभी कभी हमारी नियति
नीयत पर भारी पड़ जाती है
सोच को दबा दुस्वपन
उजागर कर जाती है।

कुछ ऐसा ही हष्र हुआ
मेरे दिव्य स्वपन का भी
कलम टूट गई स्याही सूख गई
शब्द हवा हुए सोच छूट गई।

कलम से कागज़ का सफ़र बहुत लंबा हो गया
अचानक कहीं दूर मुझसे मेरा लक्ष्य हो गया।

रह गई तो बस मेरी तन्हाई
खुद से उलझती ताने बाने बुनती
कुछ नया पाने का
कभी न खत्म होने वाला
इंतज़ार करती।

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