Hindi Poetry

द्रोपदी

अग्नि से जन्मी थी वो
नाम हुआ द्रोपदी
पांचाल की राजकुमारी
कुरुओं की वधू बनी
सुनी होगी
तुमने कहानी उसकी!

वही पांच पांडवों की
साझी पत्नी
कृष्ण की सखी
कर्ण की प्रेयसी
कौन जाने देवी थी या
सामान्य नारी
पर सुनी होगी
तुमने कहानी उसकी!

द्यूत की बलि चढ़ी
युद्ध का कारण बनी
जंगलों की खाक छानी
रानी से सैरंध्री बनी
पुत्रों को खोया उसने
अपमान का घूंट पीती रही
अवश्य सुनी होगी
तुमने कहानी उसकी!

अग्नि से प्रकट हो
जीवन भर ज्वलित रही
न दांप्त्य सुख भोगा उसने
न प्रेरणादायी माँ बनी
बस द्वेष-ईर्ष्या के दावानल में
आहुति सी जलती रही
कलयुग के प्रारंभ की
पहली सीढ़ी बनी
सुनी होगी न
तुमने कहानी उसकी!

काश! वो अग्नि-पुत्री
न भूली होती ताकत अपनी
न होती समर्पित विवाह-वेदी पर
न क्रीड़ा का मोहरा बनती
चीर-हरण करते दुशासन से
गिड़गिड़ाती नहीं
आंखों में आंखें डाल
भस्म कर देती!

न होती मूक दर्शक
महाभारत के सोपानों की
हाथों में शस्त्र उठा
कौरवों को ढेर कर देती
अभिमन्यु की मृत्यु
अकारण न होती
कलयुग के कलुषित युग की
स्थापना न होती!

काश! वो जान पाती
अपनी शक्ति
आज द्रोपदी परिहास नहीं
मातृशक्ति का परिचायक होती
फिर कह पाते तुम भी
नहीं वह अग्नि-पुत्री
अभिशप्त नहीं
जिसकी सुनी थी
तुमने कहानी कभी!

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