कल रात हमने Dragon Fly को सोते देखा। अब आप कहेंगे इसमें नया क्या किया। सोते तो सभी हैं। घोड़े खड़े-खड़े, इंसान पड़े-पड़े।
पर नहीं, ये कुछ अलग ही अंदाज़ था। शाम गहरा चुकी थी। स्याह आसमां बिन चांद तारे सूना सा लग रहा था और एक अजीब सी घुटन थी वातावरण में। हम इन सबको अनदेखा करते टहलने का प्रयास कर रहे थे। यकायक नज़र तुलसी के पौधे पर अटक गई। उसकी टहनी झुकी हुई थी, मानो किसी ने तोड़ कर चिपका भर दी हो।
हमसे रहा नहीं गया। पौधों से खासा प्रेम है। मुड़ना तुड़ना सहन न होता हमसे। बस आगे बढ़े कि सीधी कर दें टहनी। पर हाथ लगाने से पहले ही वो डाल का टुकड़ा तो उड़ चला। बड़े से डैने फैलाए, डबडबाई आंखों से प्राण बचाए। फिर तो लाइन ही लग गई। पांच छह एक साथ भनभनाने लगी जैसे किसी जादूगर की टोपी में से निकल आई हों अचानक। हमने तो बस एक को छूने की कोशिश भर की थी पर जान का जोखिम तो सहन होता नहीं न किसी से भी।
हम अलग हैरान थे कि अब तक तो एक नहीं दिखती थी, और अब इतनी सारी। पर फिर याद आई पोलो कोल्हो की वो कहानी कि होता सब कुछ हमारे आस-पास ही है, बस अनदेखा अबूझ सा रहता है, जब तक पहली बार ध्यान आकर्षित नहीं होता, कुछ अहसासों सरीखा, उन्हें समझना भी कब आसान रहा।
वैसे ये पढ़ने के बाद हमारे कान खड़े हो गए थे और हम अदृश्य पक्षों के प्रति बेहद सचेत। उसी दिन पहली बार सुना था शब्द ‘फलाना’ …बस फिर तो पूछिए ही मत, पूरा दिन फलाना ढिमकाना ही गूंजता रहा हमारे चारों ओर। कुछ खड़क सिंह की खिड़कियों से ही खड़क गए थे हम भी उस रोज़।
पर बहरहाल, इन इत्मीनान से सोती Dragon Flies को देख मन को बहुत शांति मिली। कोई तो है जो चैन की नींद ले पाता है। सपने नहीं दिये न ईश्वर ने इन्हें वरना वजन से दब ही जातीं बेचारी।
सच, बहुत भारी होते हैं सपने। तभी तो इनके टूटने पर फूट-फूट कर रोते हैं हम कि बोझ उतर जाए और मन फूल सा हल्का हो जाए। तूने भी हमें क्या-क्या दे डाला, बस पंख देना ही भूल गया। रे ईश्वर तेरी महिमा अपरंपार॥
Anupama
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