Fiction

दो लड़ाके

ये वक़्त भी न.. अजब पहेली है.. जाने कैसे इसे हमारी बेक़रारी की खबर हो जाती है… जिस दिन आप जल्दी में हों ठीक उसी दिन ये थम सा जाता है… घड़ी की सुइयां चिपक सी जाती हैं.. अक्खड़ बन सेकंड की सुई मिनट्स से भी धीमे चलती है.. और आप ठण्डी आहें और खुद पे झल्लाने के सिवा कुछ कर भी नहीं सकते… विनीता का भी बुरा हाल था… मेट्रो की speed उसे बैल गाड़ी से भी कम लग रही थी… एक स्टेशन से दुसरे तक मानो सदियाँ बीत जाएँ… बार बार मोबाइल चेक करती… कलाई पर जो घड़ी पहनना भूल गयी.. उसे भी उचक कर खोजने की कोशिश करने लगती .. और फिर मन में बुदबुदा कर ढांढस कर लेती.. पिछली बार आदित्य भी तो लेट ही पहुंचे थे… इस बार थोडा इंतज़ार करेंगें तो क्या बिगड़ जायेगा..

पल दो पल सुकून से बीतते … और फिर उसे आदि का भोला सा चेहरा याद आने लगता… कुछ खाया भी नहीं होगा उन्होंने… हैं भी तो कितने लापरवाह… काम में जुट गए तो समय का होश ही नहीं रहता… सीधे दफ्तर से आए होंगें… थके हारे… हैं भी तो कैसे ज़िद्दी… कॉफी हाउस के बाहर खड़े रहेंगें जनाब.. ये नहीं कि कुछ खा ही लें… न… इंतज़ार करेंगें कि मैं पहुंचूं और फिर डिसाइड हो की कहाँ जाना है.. क्या खाना है…हर बात मेरी मर्ज़ी की.. मेरे लिए… और मैं पगली… इतनी लेट हो गयी..

आधे घण्टे से ज़्यादा हो गया, इन मैडम का कुछ पता ही नहीं, आदित्य मेट्रो स्टेशन के बाहर गाड़ी से टेक लगाये इधर उधर झांकते हुए.. खुद को संयित दिखाने की असफल कोशिश कर रहा था… पर जब मन में खलबली मची हो तो चैन कैसे मिले… हाथ झटक कर घड़ी में वक़्त देखता और झल्लाकर मोबाइल चेक करने लगता… कोई मेसेज भी नहीं… उसका फ़ोन भी आउट ऑफ़ नेटवर्क है..कहीं कुछ हो तो नहीं गया.. लापरवाह भी तो कितनी है ये लड़की… न रास्तों का पता न खुद की होश… रोड भी ऎसे क्रॉस करती है मानो बाग़ में टहल रही हो… महारानी जी के लिए पूरा ट्रैफिक खुद ब खुद रुक जायेगा न जैसे… हक़ समझती है हर चीज़ पर अपना.. और हर किसी पे झट से अँधा विश्वास… उफ़ ये लड़की… कब समझेगी दुनियादारी…ठीक हो सब… अब आ भी जाओ…..

हड़बड़ाती सी विनीता स्टेशन से बाहर आई…. मुस्कुराता आदि उसके सामने था… झट त्यौरियां चढ़ाकर बोली… ज़्यादा वेट तो नहीं करना पड़ा न तुम्हें… थोड़ी सी देरी हो गयी बस… वैसे पिछली बार मैंने इस से ज़्यादा वेट किया था तुम्हारा..

अपनी गलती मानना आसान थोड़े ही इस नकचिढि के लिये…आदि मन ही मन हंसा और अपने चिर परिचित अंदाज़ में बोला… हाँ मैं तो जैसे मरा जा रहा था न तुमसे मिलने को… न आती इतना ही गुस्सा थी तो… जाओ … भाग जाओ…

हाँ चली जाऊंगी… मुझे ही कौन सा शौक है आने का… विनीता कुछ हर्ट सी होकर बोली…

अच्छा ए सुनो न…अब आ ही गयी हो तो कॉफ़ी पी लो… सुना है नाचोस भी टेस्टी हैं यहाँ के… और दो लड़ाके अपनी मन्ज़िल की और चल दिए….
Anupama

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