सुनिए मेरी कविता दीवानी, मेरे शब्द मेरे साथ पर
ये सरसराती सर्द हवा
जब करीब से गुज़रती है
जाने क्यों अपनी सी लगती है
न बहने का खौफ इसे
न थमने से डरती है
ऊपर नीचे आगे पीछे
पंख फैलाए आंखें मीचे
उन्मुक्त गगन में इठलाती है
सबसे जुड़ती सबसे कटती
सांसों में यूं घुलती है
न रूकने का होश इसे
न चलने के मानी है
किश्तों में जीती रेतों से रिश्ते
अजब-गजब मस्तानी है
ये सरसराती सर्द हवा
सच मुझसी ही दीवानी है
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